दुनिया से बेखबर ‘सूरदास’ हिंदी साहित्य के सूर्य कैसे हो सकते हैं !

महाकवि सूरदास ब्रजभाषा के ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं की प्रेरकता में अगले ४०० सालों तक ब्रज में ही तमाम कवियों ने एक युगधर्म बनाए रखा. सूर का साहित्य ज्यादातर कृष्ण अनुराग में ही लिखा गया है. सूरसागर, सूरसारावली और साहित्यलहरी सूरदास का साहित्यिक योगदान है. हिंदी साहित्य के तमाम विद्यार्थी और रिसर्च स्काॅलर ये पढ़ते और स्वीकारते आए हैं कि महाकवि सूरदास हिंदी साहित्य के सूर्य हैं. बहुत सारे विद्वान मुझे यहां ये समझाने की कोशिश करेंगे कि सूर ने तो हिंदी में लिखा ही नहीं तो फिर वे हिंदी साहित्य के सूर्य हो ही नहीं सकते, उन्हें मै यहां रोकना चाहूंगा और ये बताऊंगा कि दरअसल ब्रज, अवधी और मैथिली कोई भाषा नहीं, हिंदी की ही उपभाषाएं हैं.

अंधे कवि सूर ने दुनिया नहीं देखी थी, तो उन्होंने कृष्ण को ही दुनिया मान लिया और पूरी शिद्दत से भक्ति दीप जलाते रहे. ये भी इस विषय का एक प्रतिपक्ष हो सकता है. तो क्या उनके बाद के सैंकड़ों कवि भी अंधे थें, जिन्होंने दुनिया के इतर कृष्ण को ही अपना विषय चुना. दरअसल ये प्रेम भी बहुत अच्छी चीज़ नहीं है. इसके अभाव और प्रभाव में जो रचनाएं अनुदित होती हैं, वो दुनिया से कोई वास्ता नहीं रखती. ऐसे शाइर सिर्फ अपने गम को ही दुनिया का बेहतरीन विषय चुन उसका ही राग अलापते रहते हैं.

यही बात कृष्ण प्रेम में कवि सूरदास ने किया है. हां, ये भी जरूर है कि तमाम विद्याओं और ज्ञान को उन्होंने अपने कृष्ण-सृजन में उपमान बनाया है. दुनिया के सामयिक मुद्दों को सीधे तौर पर नहीं जोड़ा है. जैसे कि नागार्जुन, मुक्तिबोध, धूमिल और दुष्यंत ने जोड़ा है.

ये प्रेम राह भी आदमी से क्या कुछ छुड़वा नहीं देती. हिंदी साहित्य का इतिहास पढ़ने के दौरान हम सभी ने ये पद पढ़ा है कि;

सूर सूर तुलसी शशि, उडुगन केशवदास;
अब के कवि खद्योत सम, जह-तह करे प्रकास.

तो बताइए हिंदी साहित्य के इतिहास का ये प्रारंभिक पद असल में कितना उचित है.
#ओजस

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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