आलोचक सम्राट रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी और मैनेजर पांडेय ने ब्रजभाषा के आदिकवि या यूं कहें कि ब्रजभाषा के कवि प्रवर्तक महाकवि सूरदास के बारे में जो कुछ लिखा, उसे एक बार जरूर पढ़ा जाना चाहिए. उसके बाद ये सोचना चाहिए कि आखिरकार एक कवि
ने कृष्ण भक्ति की जो दीप जलाई वो हिंदी के उपभाषा ब्रज को 400 सालों तक रोशन कैसे करती रही.
आधुनिक समय में तो भारत में लाखों कवि खुद को लोकप्रिय बनाने के लिए मंचों के लिए तरसते फिर रहे हैं, लेकिन एक अंधे कवि सूर ने तो लोकप्रियता के इतने प्रयास भी नहीं किए. माध्यमों के भरपूर साधन मौजूद होने के बाद भी आज कोई सूर की तरह भ्रमरगीत गाकर अपनी सुध-बुध नहीं खोता और ना ही अपने विषयवस्तु की दासता में इस कदर मगन ही होता है कि दुनिया को गौण मान ले. वो टार्गेटेड आॅडियंस के लिए लिखता है. इतने संचार माध्यम होने के बावजूद अच्छी कविताएं और नये युवा कवियों को नेपथ्य से बाहर आने में कितना समय लग जाता है.
लव फिलाॅस्फी पर सूरदास ने जो लिख दिया उसका छायानुवाद P. B Shelley की कविता में दिखाई देना. भारतीय साहित्य सम्पत्ति की मौलिकता को दर्शाता है. यथाश्च;
यह ऋतु रूसिबे को नाहीं।
बरषत मेघ मेदिनी के हित, प्रीतम हरषि मिलाहीं।
जेती बेलि ग्रीष्म ऋतु डाहीं, ते तरवर लपटाहीं।
जे जल बिनु सरिता ते पूरन, मिलन समुद्रहिं जाहीं।
जोबन धन है दिवस चारि कौ, ज्यों बदरी की छाहीं।
The fountains mingle with the river,
And the rivers with ocean,
The winds of heaven mix for ever
With a sweet emotion;
Nothing in the world is single,
All things by a law divine
In one another being mingle
Why not, I with Thine?
– P B Shelley
पूरी कायनात प्यार करने की उत्सुकता रखती है. ये ही प्रकृति धर्म है. ये प्यार की उत्सुकता बस जवानी भर के लिए उतावली हो रही है तो निसंदेह आपके प्रेम में वासना का साहचर्य हो गया है. ऐसा मुमकिन है कि उत्सुकता क्षणिक हो लेकिन प्यार घोर सनातनी है.
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