ये कौन सा समाज है, जो सपनों की उड़ान में अड़चनें डालना छोड़ना नहीं चाहता. उसे किसने हक दिया है कि वो दूसरों की आजादियां सुनिश्चित करे. ऐसे समाज को जो लोग लगातार बर्दाश्त करते जा रहे हैं, वे भी उतने ही गुनहगार है; जितने कि सीमाओं की पारंपरिक दीवार उठाने वाले संकुचित और सीमित मानसिकता के लोग.
इस बीच मध्य प्रदेश की एक बेटी का फैसला वाकई में साहसिक और इस दोयम दर्जे के लोगों के लिए सबक के तौर पर है जो लड़कियों को अपनी जागीर समझने की भूल करते हैं.
भारतीय समाज किसी की बपौती नहीं है, जो मर्यादाहीन बनकर संबंधों में बर्बरता ढाल दे. उसे कोई हक नहीं है कि वो एक महिला के सपनों के साथ खिलवाड़ करे, और किसी की अरमानों पर पानी फेर दे.
आज मैं आपको ८ साल के संघर्ष का वो फलसफा सुनाने जा रहा हूँ, जो सुनने के बाद आप अपनी आंखों को नम करने से रोक नहीं पायेंगे.
ये कहानी है एक हिम्मतवर लड़की की. उस लड़की की साहसिक कहानी है जिसने शादी के ८ साल बाद अपने सपनों के शिखर को फतह करने के लिए उस पति को तलाक दे दिया, जो उसे पीटता था. जब वो पढ़ाई के लिए अपने पति से निवेदन करती तो वो उसके खाने पीने पर प्रतिबंध लगा देता. उसे शायद पता नहीं था कि वो सपनों को पीट नहीं सकता. वो उड़ानों को भूखा रखकर अपनी बात मनवा सकता.
ये कहानी उस लड़की की है जो आज जर्नलिज्म की स्टूडेंट है और खुद को इस झंडावरदार समाज और खाक पंचायती के खिलाफ तैयार कर रही है. कहानी बहुत लंबी है. लेकिन ये संघर्ष और सटीक फैसले की मुकम्मल कहानी है.
क्रमशः..,