मेट्रो में एक मुकम्मल जहान (2)

आज मेट्रो में जो एक चीज़ मुझे दिखी, वो वाकई में बहुत ही भावुकता से भरी हुई थी. अतिसंवेदनशील लोग भविष्य के आतातायी परिणामों को सोचकर इतने बेजार क्यों हो जाते हैं? उन लम्हों में भी देर तक बेरंग रहते हैं, जबकि उनकी दुनियाएं बगल में ही हो. ऐसा माना जाता है कि शादी के बाद की जिंदगी में कोई साथ होता है. दो लोगों को अपनी जिंदगियां बेहतरीन ढंग से गुजारने में थोड़ी आसानी हो जाती है. लेकिन जो मेरी आँखों के सामने घटित हो रहा था. वो इस मान्यता से बहुतेरे सवाल करने लगा.

छतरपुर स्टेशन पर आॅडियो इंस्ट्रक्टर ने चेताया कि जिनको यहां उतरना है, वे उतर जाए. तभी बाहर से एक महिला, उसके पति और यही कोई 2 साल का प्यारा सा बच्चा मेट्रो में प्रवेश करते हैं. महिला को पति लगातार समझाने की कोशिश में लगा है कि मां की तबियत ठीक होते ही वो वापस आ सकती है. महिला बस रोए जा रही है. बेटा हंसना नहीं छोड़ रहा और एक ऐसा मंजर सामने दिखता है जो महिला की फिक्रमंदी और बेटे की बेफिक्री को बैनर बना देता है. महिला सांस भरते हुए पूछती है कि क्या जो काम वो यहां कर रहे हैं, वो अपने शहर में नहीं कर सकते. पति गुस्से में कहता है कि अगर ऐसा होता तो मुझे शौक लगी है, घर वालों को छोड़कर यहां काम करने की.

महिला के द्वंद्व में अब काफी हद तक सुकून देखा जा सकता था. प्यार में ऐसे समझौते छोटे शहरों के बहुत सारे युवकों को करने पड़ते हैं और ना जाने कितने प्यार करने वालों को सरकारी योजनाओं में छोटे शहरों को अर्थव्यवस्था से ना जोड़कर प्यार करने से रोका जाता है.
#ओजस

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: