भारत में बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि युवा संभावनाओं के पंख उड़ान भरने से पहले ही कतर दिए जाते हैं. अच्छी-अच्छी उड़ाने दम तोड़ देती हैं. आज सुबह घर से निकला तो देखा कि एक 18 साल का नौजवान अपनी परिस्थितियों के बहकावे में आकर जोमैटो के लिए काम कर रहा है. चेहरे पर काम के प्रति अनमेलपन साफ तौर पर दिख रहा था. उसको देखकर मुझे अपने एक दोस्त की याद आ गई.
आंखें नम होने ही वाली थी कि कोई फोन आ गया. फिर किसी तरह अपनी भावनाओं को थपकी देकर सुला दिया. जिस दोस्त की याद मुझे अचानक से आ गई. उसके साथ भी परिस्थितियाँ विपरित थी. पांचवी क्लास में मैथमेटिक्स में अच्छे छात्रों में बृजेश का नाम था. आलेख तो ऐसा लिखता कि अक्षर-अक्षर टाइपराइटेड दिखाई देते. परिवार की आर्थिक हालत ठीक ना होने की वजह से वो 12वीं के बाद पढाई नहीं कर सका और किसी महानगर कि तरफ पलायन कर उस संभावना का गला घोंट दिया जो आगे चलकर उसकी प्रतिभा को सजीव कर सकती थीं.
ऐसे बहुत से भारतीय संभावनाओं को जीविका की मझधार में समझौते करने पड़ते हैं. अब तो बेरोजगारी का जो एक अनवरत अंधेरापन भारत के युवाओं के सामने है, उसमें कोई चराग जलाने वाला दिखाई नहीं देता.
अपनी जिंदगी में मै जितना अध्ययन और अनवरत मेहनत करता रहता हूं. उसका मुझे कोई विशेष फायदा मिलता नहीं है. फिर भी आधुनिकता के इस हवाई सफर में आधारशिला बनाते हुए चलने की कोशिश जारी रखूंगा. ये जीवन उपलब्धियों की शिखर फतह करने भर की कामना के लिए नहीं मिला है. एक भारतीय युवा के नाते तमाम अधिकारों की मांग से पहले मुझे अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए काम करना है. सबसे ज्यादा दुख तो तब होता है कि इन विपरीत परिस्थितियों में मेरे अपने मुझ पर यकीन करना छोड़ चुके हैं.
भविष्य में उन लोगों के भरोसे को जीतने की कोशिशें जारी रखूंगा जिन्होंने मुझे नाकारा मान लिया. मन में तो आता है कि सब कुछ छोड़ छाड़ के इस जीवनलीला को ही समाप्त कर लूं. मगर धड़कनें ढारस बंधाती हैं और ये विश्वास दिलाती हैं कि तुम में सामर्थ्य है, जो आगे आने वाली पीढ़ी के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं. इसी नाते फिर से इस जीवन के जंजाल में शरीक हो जाता हूँ.
हे भारत माँ! अगर तू अपने बेटे अभिजीत पर यकीन नहीं कर सकती. तो मुझे लगता है कि भरोसे का डोर भी मजबूती छोड़ देगा. जहां प्रतियोगिता का कोई आधार है ही नहीं. मजबूर लोगों को समाप्त करने की साजिशें देखिए कब जाकर समाप्त होती हैं.
#ओजस