सबकी जिंदगी में एक समय ऐसा आता है, जब वो किसी धुन में, सनक में या अफेक्शन में पड़कर परिंदे की तरह अनंत में विचरने लगता है. दुनिया उसके लिए एक सराउंडिंग बन जाती है. उसे एक धुन अपने नियंत्रण में रखने लगती है.
मैं उस समय बीएससी फाइनल इयर में पढ़ाई कर रहा था. पढ़ने में बहुत अच्छा नहीं होने के साथ ही साइंस की किताबों की बजाय ज्यादा दिलचस्पी साहित्य में ही रहती. दो महीने तक तो कुछ यही हालत जारी रहा. तीसरे महीने में एक चेहरे ने मुझे फिदायीन बना दिया. अब अभिजीत को फिजिक्स, मैथ और कैमिस्ट्री की किताबें भाने लगी थी.
प्यार का अनुभव सहजता से लिखना कितना खुशनुमा होता है ना! मेरे पास उस समय एक जी-फाइव की मोबाइल हुआ करती थी. सारे काॅल अपने आप रिकार्ड हो जाया करते थें. आॅटो काल रिकाॅर्ड लगाने की वजह ये थी कि उन दिनों कुछ दोस्त अपनी ही बातों से मुकर जाते थे. तो मैंने साक्ष्य के तौर पर इन्हें सुरक्षित करना शुरू कर दिया. एक दिन पता नहीं कैसे उनका भी फोन आ ही गया. फोन पर तकरीबन ४ मिनट तक बातें हुई थी. फोन रिकाॅर्ड हो गया.
आगे चलकर यही फोन रिकाॅर्ड मुझे जिंदा रखने में मददगार साबित हुआ. जब भी दिल्ली में रहते हुए उन लम्हों को याद करता तो वही पुरानी रिकार्डिंग सुनकर सो जाता.
फोन के साथ ही वो बेशकीमती आवाज़ भी अब खो गई है. अन्यतम प्यार की ये स्मृतियां कुछ भी नहीं पाना चाहती थी. कुछ हासिल करना इसे सुहाता नहीं था. बस एक आभास जो चित्त में देर तक बरकरार रहता है, उसको दिशाहीन नहीं होने देती.
उनका ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए अभिजीत पढ़ने लगा था. इश्क़ भी किसी परीक्षा से कम नहीं होता. धीरे धीरे ये राग सनक में तबदील होने लगा. जिस दिन वो क्लास नहीं आती, ऐसा लगता कि कब कोचिंग क्लास समाप्त हो और घर चला जाऊं. उस समय मेरी उम्र १९ साल रही होगी. पता नहीं कौन सा मायाजाल था उस चेहरे में कि आंखें एक दीदार करके मोक्ष सरीका अनुभव पा जाती.
मैं नहीं चाहता कि किसी को मेरे हालातों और परिस्थितियों पर सवाल उठाने का हक दिया जाना चाहिए. अपने व्यक्तिवाद के उत्थान के लिए ताउम्र कोशिश करता रहूंगा. फिर कभी उनसे बात नहीं हुई, मैंने भी कोशिश नहीं की. जिंदगी में उसके बाद भी कई चेहरे चित्त भित्तियों पर आकर चिपक जाते हैं, संवेदनशील जमात में होने का खामियाजा भुगतना तो पड़ता ही है. प्यार तो पत्तों पर स्थिर शबनम की तरह कब टरकने लगता है, पता भी नहीं चलता.
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