मध्यस्थ ना हो तो कितना कुछ बदल जाएगा

(बदलाव की उम्मीद के साथ)

यही कोई ११ साल का रहा होऊंगा. उस समय मुझे इस बात पर बड़ी परेशानी होती थी कि स्कूल में माॅर्निटर ही किसी भी बच्चे की शिकायत हेड मास्टर से बता सकता था. बच्चे स्वयं जाकर अपनी परेशानी प्रिंसिपल से कहने की योग्यता से खारिज कर दिए गए थे. दुर्भाग्य से क्लास का माॅर्नीटर भी मुझे ही चुन लिया गया था. क्लास में सभी बच्चों की जो भी शिकायत होती थी, उसे लिखना होता था और सप्ताह में शनिवार के दिन उसे प्रिंसिपल साहब को बताना पड़ता था.

ये काम इतना कठिन लगता कि जैसे मैं जिसकी शिकायत लिख रहा होता था, उसके प्रतिपक्ष के साथ नाइंसाफ़ी कर रहा होऊं. मुझे लगता था कि बातें दोनों की रिपोर्ट की जानी चाहिए लेकिन निर्देश था कि जो पीड़ित पक्ष है, उसे प्राथमिकता देनी है.

कई दफा तो ऐसा होता रहा कि दो बच्चों में झगड़ा हुआ और पीड़ित की ही सरासर गलती होती लेकिन नियत तो नियम होता है. उसे तोड़ना अनुशासन ना मानना भी कहा जाता है. फिर मुझे लगा कि मध्यस्थ होने ही नहीं चाहिए.

आजकल मध्यस्थ सामाजिक बदलाव और प्रगति में बड़ा बुरा असर डाल रहे हैं. सबको ये हक मिलना चाहिए कि वे सीधे तौर पर अपनी बात रखें.

भारतीय समाज में तरह-तरह के मध्यस्थ हैं. एक तो अरेंज मैरेज में होते हैं, जो लड़की पक्ष पर दहेज का दबाव बनाते हैं. क्या खाक पंचायती है दो मनों को मिलाने में भी अरेंज मैरेज का धंधा. प्याज के बिचौलिए भी मध्यस्थ होते हैं. वे किसानों से सस्ते दामों में प्याज खरीदकर स्टोर कर लेते हैं और ग्राहकों को महंगे दामों में खरीदने के लिए मजबूर करते हैं. ये बाबा लोग भी मध्यस्थ ही हैं. ईश्वर और भक्त के बीच समर्पण और भाव के अतिरिक्त किसी व्यक्ति की जरूरत पड़ रही है तो ये अनैतिक ही है.

हमारे समाज में मध्यस्थ कई रुपों में पाए जाते हैं. वैसे तो कहा जाता है कि कर्म ही पूजा है लेकिन निम्नस्तरीय लोगों के लिए कर्म शोषण का जरिया बनाया जाता है. जिसको समाज का ही उच्चस्तरीय वर्ग मध्यस्थ बनकर संचालित करता है. इसी तरह मीडिल क्लास प्रतिभाओं की मध्यस्थता पूंजीपतियों द्वारा की जाती है.

रिश्तों में दरार पड़ने की बड़ी वजह मध्यस्थ ही होते हैं. नफ़रत फैलाना ही कुछ लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार होता है. वे आपके पिता को आपके खिलाफ भड़काएंगे. भाई से भाई में वैमनस्य स्थापित करेंगे.

ऐसे लोगों के खिलाफ सामाजिक लड़ाई की जरूरत है. आखिर में “मध्यस्थ ना होते तो कितना सुकून होता”.
#ओजस

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: