27 अक्टूबर की डायरी से

हर रोज कुछ ऐसी बातें जेहन पर जाकर चुंबक की तरह चपक जाया करती हैं, जो आसानी से भुलाई नहीं जा सकती. फेसबुक से जुड़े तमाम साथी इस बात से वाकिफ होंगे कि मेरा मनोविज्ञान बहुत ही सतही लेकिन अपरिपक्व है.

मुझे इस बात से कोई परेशानी नहीं है. मुझे लगता है कि जो इंसान अपनी जिंदगी में अपनी कमजोरियों को बताने का माद्दा और कुवत रखता है. उसके लिए परिपक्वता बहुत दूर की कौडी नहीं है.

परिवार, समाज और देश बाउंड्रीज़ हैं. आपको परिवार के दायित्वों को निभाने की ज़रूरत जिस दिन महसूस होने लगेगी, वही बाउंडरी सिस्टम में तबदील हो जाएगा.

सामाजिक बदलाव की नीयत से जिस वक्त आप कोई नया कदम उठाएंगे, वो भी आपके निजी ज़िंदगी का मसला हो जाएगा. ये तब्दीलियां राष्ट्रप्रेमियों के लिए मुल्क से घर हो जाया करती हैं.

जब आपका कोई बहुत करीबी आपको frustrated कहेगा तो लाजिमी है कि आपको बुरा लगे लेकिन इतनी गौण बातों को महत्व देने से नुकसान छोड़ फायदा कभी भी नहीं होने वाला.

सीधा रास्ता ये निकलता है कि अपनी नाकामियों के खिलाफ आंदोलन फूंक दो. सबल और रचनात्मक बनो. कुछ तो लोग कहेंगे….,,,
#ओजस

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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