साहित्य में बदलाव की उम्मीद के साथ

अगर मुझे साहित्य की परिभाषा लिखने की जिम्मेदारी मिलती है तो मैं लिखूंगा कि साहित्य ‘यथार्थ का पुनरावलोकन’ है.

समकालीन समय में साहित्य का दायरा बढ़ा है. साहित्य अब उन सीमाओं को लांघ रही है, जो पारंपरिक तौर पर खींचे गए थे. यथार्थ में अगर ठहराव को साहित्यकार गुंथेगा नहीं तो निश्चित तौर पर ये समय आधुनिक भारतीय साहित्य के अवसानकाल के रुप में जाना जाएगा.

आजकल मुश्किल इस बात की है कि लोकप्रियता साहित्य का बेहद जरूरी पैमाना बन गया है. अब बिषयवस्तु का उम्दा होना उतना जरूरी नहीं रहा, जितना पहले हुआ करता था.

सूर, तुलसी, केशव, जायसी, घनानंद और देव की जो लोग ठीक समझ भी विकसित नहीं कर पाएं हैं वो भी आज बड़के साहित्यकार हैं. मैं ये नहीं कहता कि ये सार्वभौमिक है. अपवाद की गुंजाइश जरूर होगी.

फिर भी मन ये नहीं मानता कि प्रारंभिक हिंदी साहित्य की जानकारी के बिना भी किसी के नाम के साथ साहित्यकार शब्द चस्पा कर देना उचित है. कोई तो कसौटी बनाई जानी चाहिए जो इसका आंकलन व्यापक तरीके से कर सके.
#ओजस

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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