दिल्ली मेट्रो की विश्वसनीयता कटघरे में है. इस साल जितनी बार दिल्ली मेट्रो के पहिए थमे उस हिसाब से इसकी तुलना ‘भारतीय रेल’ से करना गलत नहीं होगा और ना ही ऐसा कहना कोई अतिशयोक्ति होगा. भारतीय रेल से तुलना इसलिए क्योंकि इसके भरोसे समय की पाबंदी पालना सबसे मुश्किल काम है. सुपरफास्ट ट्रेनों की हालत तो ऐसी है कि शीतलहर पड़ते ही इनकी गति धीमी पड़ जाती है. 5 दिसंबर को ऐसा ही कुछ ब्लू-लाइन पर देखा गया, जहां तकनीकी खराबी के कारण दिल्ली मेट्रो के 786 टिप में से 16 टिप रद्द करनी पड़ी। वहीं 20 टिप में मेट्रो देरी से चली।
19 मार्च को ब्लू लाइन 90 मिनट तक बाधित रही तो 13 मई को आई आंधी में घंटों तक मेट्रो को रोकना गया. जिसके बाद 23 जुलाई और 21 अगस्त को भी ब्लू लाइन सिग्नल में गड़बड़ी देखी गई. 26 अगस्त को येलो लाइन भी ब्लू लाइन की हरकतें दुहराने लगी. देखा-देखी मजेंटा लाइन ने भी 11 सितंबर को इस परंपरा को जारी रखा. आगे चलकर ब्लू-लाइन में ‘सिग्नल-समस्या’ रूपी दिल का दौरा 2 बार फिर से पड़ा, तारीख थी- 20 नवंबर और 5 दिसंबर.
2018 में दिल्ली मेट्रो अलग-अलग रूट्स पर सिग्नल और तकनीकी खामियों की वजह से बाधित हुई. 6 दिसंबर को जब ट्रेन घंटों बीच रास्ते में रूकी रही तो दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने ब्लू लाइन के सिग्नल सिस्टम का सॉफ्टवेयर तैयार और रखरखाव करने वाली जर्मनी कंपनी सीमेंस को डेटा भेजा है. डीएमआरसी के कार्यकारी निदेशक अनुल दयाल ने बताया कि इंटरलॉकिंग और सिग्नलिंग में आई दिक्कत की वजह से ही ऐसी अनियमितताएं हो रही हैं. समाधान के लिए सारा डाटा अध्ययन के लिए सीमेंस कंपनी के जर्मनी स्थित मुख्यालय भेज दिया गया है.