21 दिसंबर की डायरी से

आप पर गुस्सा कौन हो सकता है, वही लोग ना जो आपकी फ़िक्र करते हो. जिसको आपकी परवाह हो. इसलिए कभी भी इन सब बातों पर बेकार में सोचना नहीं चाहिए. आप इस बात पर हंसने का मौका ढूंढ लीजिए ना ! कि पाकिस्तान में गधे बढ़ गए हैं.

खैर; नसीर साहब अपने बच्चों को क्या जवाब देंगे, आपके पास जवाब हो तो उन्हें कुछ सुझाव दे दीजिए. वैसे सवाल बुलंदशहर भी पूछ रहा था लेकिन जवाब दिया नहीं गया.

भारत में धर्म का अतिरेक और उन्माद तो अंधविश्वास से भी खतरनाक हो गया है. अरे कौन सा धर्म? उसे तुम धर्म कहते हो जिसने बचपन से साथ रहने वाले राहुल और हामिद की दोस्ती को शक के नजरिए से देखने की कोशिश की जिसे हिंदू-मुस्लिम विवादों में उलझाने की कोशिश कर रहे हो. सहज प्रेम और समर्पण का ताना-बाना तोड़कर क्या बना लोगे? बचेगा कौन, जब ये सामाजिक सौहार्द ही अस्तित्व खो देगा. आदिगुरू शंकराचार्य के चारों मठ या शिकागो में सर्वधर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद की वाक्पटुता या राजकीय मर्यादाओं के लिए राम के वनगमन का फैसला या महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, मोहम्मद साहेब या ईसा मसीह! तुम वर्तमान में नफरतों के आग से सब कुछ जलाकर राख कर देना चाहते हो.

क्या हासिल कर लोगे ऐसा करके? जिसका मकसद सिर्फ पद और गरिमा तक ही सीमित है. तब तुम और अंजान हो हिंदुत्व से हिजरत से, धर्म से और मजहब से. इसी धर्म के अगुवा ऋषि दधीचि ने समाज कल्याण और सुरक्षा की भावना से अपनी अस्थियां तक देवराज इंद्र को दे दिया था. गाय की सुरक्षा के लिए सूर्यवंशीय राजा दिलीप ने शेर से नंदनी गाय को बचाने के लिए स्वयं उसके आगे कूद पड़े. आज के गौरक्षक उनके उस गौरव को कलंकित कर रहे हैं.

अगर वाकई में आप धर्म के ठेकेदार हैं तो सबसे पहले धर्म में दायित्व ढूँढने की कोशिश करें, अधिकार के लिए उन्मादी होना अधर्मिता है..
#ओजस

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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