पुराने साल का याराना बिसराने लायक नहीं है. मानव, व्यवहार से कितना मौकापरस्त होता है ना! कोई नया मिला और पुराने को अलविदा कह दिया. गुडबाय बोलने में हम कितनी जल्दबाजी कर देते हैं. 2018 में हमने जो कुछ भी हासिल किया या खो दिया. उसकी भरपाई या उन खुशनुमा लम्हों का जीवनकाल आगे मिलेगा, ये तो मुमकिन है. लेकिन वैसा ही मिलेगा; इसमें कुछ संदेह है.
पिछले साल भी इसी तरह हमने 2018 का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया था. सबने कुछ संकल्प किया था. कुछ पूरा करने का. कुछ सपनों की दहलीज़ पर चढ़ने का. आसमानी अरमानों को चूमने का. कुछ लोगों के सपने पूरे हुए होंगे, कुछेक को उम्मीद से भी ज्यादा मिल गया होगा; वहीं बहुत सारे लोग ऐसे रह गये होंगे, जिनसे कालचक्र ने बेशकीमती चीजों को छीन लिया होगा.
पिताजी हमेशा कहते हैं कि कर्म से ही भाग्य बनता है. भारतीय नागरिक होने की वजह से हमारे काम का अनुकरण दुनिया के लोगों द्वारा किया जाना चाहिए. जगदगुरु भारत ने हर काल में दुनिया को नैतिकता, मर्यादाबोध और अनुशासन का पाठ पढ़ाया है. आजकल तो भारतीय होने का कोई पैमाना ही नहीं बचा है. उच्च पदों पर काबिज लोग मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं. भारतीय राजनीति तो आजकल ‘तू-तू मैं-मैं’ के स्तरहीन चरण पर पहुंच चुकी है.
एक दौर था जब भारतीय राजनीति के सेवाभाव की मिसालें दी जाती थीं. आज भाषायी मर्यादा भी ढमलैया खाकर गिर गई है.
भारतीय समाज में असमानता और जातिगत भेदभाव का बहुत बड़ा विषकुंभ बनकर तैयार है. जिसका संक्रमण समाज में द्वेष और वैमनस्य जैसे विकार भरेगा. इससे बचने के लिए सिर्फ एक ही उपाय है कि सभी मजहब के लोग राष्ट्रनिर्माण की चुनौतियों को समझने की कोशिश कर सकें. प्यार का वातावरण हर जगह बना रहे. लोग एक दूसरे को सहयोग देने के लिए तत्पर रहे. नये साल आगमन की खुशी और पुराने साल के बीत जाने के गम के साथ.