रणबांकुरों की अर्थियां सभी भारतीयों के घर की अर्थियां होती हैं. पूरा देश एक साथ रोता है. जब मांएं अपने लाडले बेटे को इसलिए खो देती हैं कि मेरा देश सलामत रहे. बहनें बिना युद्ध के अपने भाई को. कभी सीजफायर में कोई अपना पिता खो देता है तो कभी आतंकी हमले में किसी पिता का बेटा शहीद हो जाता है. हम चार दिन आक्रोश दिखाते हैं, और समय के साथ शांत हो जाते हैं.
किसी को हक नहीं है कि वो उनकी जान की कीमत का आंकलन करे. भारत माँ का हर बेटा अपने शहीद भाई के लिए आज दुखी जरूर है. ईश्वर हमें इस दुख की घड़ी में सहनशीलता दें.
हमारे 44 सीआरपीएफ के जवानों ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को न्योछावर किया है. ये देखकर बड़ा अच्छा लगा कि इस तकलीफ़देह परिस्थिति में देश के लोग, राजनीतिक पार्टियां एकजुट हैं. जहां तक आतंकी समूहों के संरक्षण की बात है तो पाकिस्तान के ऐसे नापाक इरादे को कुचलकर रख देने की जरूरत है और अगर जंग ही इसका समाधान है तो निश्चित तौर पर चुप बैठने से काम नहीं चलने वाला. आखिर कब तक शांति और अमन के लिए हमारे हिम्मतवर सिपाही बलि की वेदी पर चढ़ते रहेंगे.
जैश के फिदायीन आतंकी किस जगह बैठकर और किसकी संरक्षण में है. ये बात जगजाहिर है. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI जैश सरीके दर्जनों टेरर आउटफिट्स को आर्थिक मदद मुहैया करवाता है. पाकिस्तान की सरजमीं से आतंकी भारत को धमकियां देते रहते हैं. पाकिस्तानी सरकार कुछ करती नहीं. जम्मू कश्मीर में भी इस तरीके के कई गिरोह हैं. हिज्बुल मुजाहिद्दीन एक ऐसा संगठन है, जिनमें १० हजार लोग सदस्य हैं. आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद उसके जनाजे पर दिखी भीड़ इस बात का स्पष्टीकरण करता है.
इस बीच प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का निर्णय काबिले तारीफ है, जिसमें उन्होंने भारतीय सेना को हमले के बाद पूरी स्वतंत्रता दे दी है.
मानवाधिकार की लड़ाई लड़ रहे लोग और कश्मीर के अलगाववादी भी कहीं ना कहीं कश्मीर के भटके नौजवानों को आधारशिला बना कर देते हैं. सेना को मिले विशेषाधिकार AFSPA पर लगाम लगाने वाली मीडिया रिपोर्ट्स से सीधा सवाल है कि क्या वे अब अपनी गलतियां मान रहे हैं कि नहीं.
राष्ट्र की मजबूती और कमजोरी के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार वहां के युवा होते हैं. वे ही राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य के निर्णायक भी होते हैं. इस बीच कश्मीर में कई युवा टोलियां पटाके फोड़ते ट्विटर जैसे जनमाध्यमों पर देखे जा रहे हैं. ये आतंकवादी हो या ना हो लेकिन आतंकवाद का खुला समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं. इनके खिलाफ भी कड़ी कार्यवाही की जरूरत है.