नहीं, ऐसी बात नहीं है प्रियंका गांधी जी. दरअसल मोदी सरकार में जनता जरूरत से ज्यादा खुश है; इसी बात की चिंता होती है. जनहित की बात आपके मुंह से अच्छी नहीं लगती, ये कहने वाले बहुतेरे लोग. सारी बातें जानते नहीं है. उन्हें नहीं पता है कि आर्थिक सुधार के नाम पर जिस नोटबंदी का प्रयोग हुआ, उससे नुकसान के सिवाय कुछ हासिल नहीं हो सका. लेकिन इसके बावजूद भी लोग कुछ सुनने को तैयार नहीं है. आपकी आवाज में जो विशेषता है वो भी उस समय प्रभावहीन हो जाता है, जब आप राबर्ट वाड्रा से जोड़ दी जाती हैं या फिर राहुल गांधी की तारीफ के कसीदें गढ़ने लगती हैं. मेरा मानना है कि बहुत सारे लोग जो राहुल गांधी पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं करते हैं वे भी आपसे उम्मीद लगाए बैठे हैं.
इस देश में किसी संस्थान की स्वायत्तता बची रह जाएगी कि नहीं. इस बात पर कोई सवाल पूछेगा तो जवाब के रूप में मोदी बनाम वंशवाद का मुद्दा हवा में उछाल दिया जाएगा. नेहरू के बारे में थोड़ी सी भी जानकारी जिस बीजेपी प्रवक्ता के पास है नहीं, वो भी इसकी योग्यता रखने वाला बना दिया जाता है कि स्तरहीन डिस्कशन करता चला जाये.
नेहरू, जैसा पीएम भारत में ना तो कभी हुआ और आगे होगा भी नहीं. हां, वही नेहरू जो पारदर्शिता के इतने बड़े मिसाल के तौर पर याद किये जाते हैं, जिसके जरिए अपनी आलोचना नाम बदलकर की गई. वो नेहरू ही थे जो विद्यार्थियों और युवाओं से मिलते समय उनकी बातें ज्यादा पसंद करते थे. किस हिसाब से ये तय कर लिया जाता है कि नरेंद्र मोदी, जवाहर की तुलना में बेहतरीन प्रधानमंत्री हैं. कौन सी विशेषताओं और राजनैतिक कसौटियों को मोदीजी ने पूरा कर दिया और नेहरू ना कर पाये.
कुछ लोग कहते हैं कि अगर राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बन गये तो देश तबाह हो जायेगा. वे लोग इस मुल्क में ज्वलंत मुद्दों और गंभीर समस्याओं का मूल्यांकन करके बतायेंगे कि आखिरकार मौजूदा वक्त में देश की स्थिति कितनी अच्छी है!
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