अपने प्यार के लिए माँ बाप से लड़िए, जरूर लड़िए. उनके खिलाफ भी जाना पड़े तो जाइए. लेकिन उससे पहले ये तो तय कर लीजिए कि आप किसकी खातिर उस प्राचीर संबंध से बिगाड़ कर रहे हो. आरोपों के मुताबिक- उस व्यक्ति के लिए जो ठाकुर से दलित बन गया हो. उस व्यक्ति से जिसने भोपाल में सगाई करने के बाद शादी ना की हो. उस व्यक्ति से जिसको आप के ही पिता ने हाथ की सभी उंगलियां कट जाने के बाद नौकरी पर रखा हो. उस व्यक्ति से जिसने आपके भाई के साथ दोस्ती होने के बाद भी जालसाजी की हो. जो नशेड़ी और चारित्रिक अवनति की सारी सीमाएं लांघ चुका हो.
इसके बाद भी आपके पिता आपको गुस्से में ही सही शुभकामनाएं देने का साहस तो रख रहे हैं. पथभ्रष्ट होना, प्यार करना नहीं होता है. पिता और भाई की चिंताएं उग्र जरूर हो जाती हैं लेकिन वो परवाह और फ़िक्र का जमीन तैयार करती हैं…
साक्षी आप अपने पिता पर आरोप लगा रही हो कि उन्होंने आपको बंदिशों में रखा. खुलकर जीने नहीं दिया. तो बताइए ना कि आपने पढ़ाई कैसे पूरी की. अजितेश तो घर से इसलिए निकला था, कि आपको हाॅस्टल छोड़ आए. और अगर आपको ये डर होता कि विधायक के गुर्गे आपको जान से मार देंगे तो बरेली से भागकर इलाहाबाद में शादी करने का साहस आपमें कभी नहीं होता. आप हफ्तों जान बचाकर भागती फिरती. इससे साबित होता है कि आप निडर होकर शादी कर रही थी. एक वीडियो क्लिप में आप रोते हुए अपने पिता से कह रही हैं मुझे माफ कर देना. उस क्लिप का मनोविज्ञान यही है कि आपके पिता और आपके बीच संबंध बहुत ही अच्छे और प्रगाढ़ हैं. पिता पर दोषारोपण से पहले आपको सोचने की जरूरत जरूर थी.
आप पछताएंगी अभी नहीं. जब आप हकीकत से रूबरू होंगी.
(इनपुट आजतक के संवाददाता पुनीत शर्मा की एक रिपोर्ट और मामले को तमाम अखबारों में पढ़ने के बाद जुटाए गए हैं))