प्रेम में कोई नियम नहीं होना चाहिए. सनातन में लोग कहते हैं कि इष्टदेव का पूजन षोडशोपचार से करने से वे मुरादें पूरी करते हैं. इस्लाम में पांच बार नमाज का नियम है. ईश्वर से प्यार करने के लिए इतना आडंबर सही नहीं लगता. साफ दिल से आंखें बंद कर उनका स्मरण करना भी किसी पूजन या नमाज अदायगी से कम नहीं है. बचपन से हमने अपने इर्द गिर्द जो देखा उसे स्वीकार करते गये. अभिभावकों से सवाल किया तो उन्होंने ये कह के मना कर दिया कि भगवान के बारे में ऐसी सोच है तुम्हारी. फिर ना चाहते हुए भी जिज्ञासा को दबाकर बैठ जाना पड़ा. सवाल बहुतेरे हैं. जिनसे सबकी आस्थाएं अजीब तरह से जुड़ी हुई है. कबीर ने भी पूछा था कि तुम्हारा खुदा बहरा है क्या? पत्थर पूजने से बेहतर है कि घर कि चकिया पूज लो? सभी निरूत्तर बैठे रहे. गीता, कुरान, गुरुग्रंथ साहिब और बाइबिल लगभग सभी ने ईश्वर सत्ता को इस तरह दिखाया है कि जैसे सब कुछ कोई सुप्रीम पावर के हाथों की कठपुतली भर है. उसकी दासता स्वीकार नहीं करोगे तो परेशान हो जाओगे.
पृथ्वी की संरचना में लगातार हो रहे बदलावों को रोकने के प्रयास में इतनी भक्ति दिखाई गई होती तो आज समुद्री जल स्तर के लगातार बढ़ने का खतरा पैदा नहीं होता. ग्लोबल वार्मिंग के दौर में पृथ्वी को पूजना भी विधर्म है. जलवायु परिवर्तन का संकट मुंडेर पर बैठकर ना मुस्कराता . जंगलों का विनाश हमें सालता और पर्यावरण की किताब हमारे लिए गीता होती. सम्प्रदाय का ये तिमिर हमें इस तरह रास आया कि हमने अंतरिक्ष के ज्ञात जीवन की सामग्रियों से भरपूर एकमात्र ग्रह को विनाश की अग्नि में झोंक सा दिया है जिसके तहस नहस होने से सब कुछ तबाह सा हो जाएगा.
((बदलाव की उम्मीद के साथ))