खबरनवीस ही अगर खबर बनने की कोशिश करने लगे तो समझ लीजिए वो आप पर एक प्रभाव काबिज करना चाहता है, राष्ट्रवाद इफेक्ट से लबरेज ऐसी रिपोर्ट्स हकीकत से कोसों दूर रहती हैं क्योंकि कभी भी प्रभाव, यथार्थ (News) हो ही नहीं सकता. खबर की भी एक स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है. जो राष्ट्रवाद इफेक्ट से मेल नहीं खाती. ऐसे रिपोर्ट्स हिंदुस्तान और पाकिस्तान में धड़ल्ले से बनाए और दिखाए जा रहे हैं. इन रिपोर्ट्स की वजह से हिंदुस्तान के लोग पाकिस्तान के लिए गलत अवधारणाएं पाल चुके हैं. पाकिस्तानी भी ऐसा ही करते होंगे.
नहीं भाई, अपराध और आतंक दोनों जगह है. ये और बात है कि पाकिस्तान इसका हब है और उसे संरक्षण भी देता है. हिंदुस्तान की सरकार इसके लिए फंडिंग नहीं करती और ऐसा भी नहीं है कि समूचा पाकिस्तान बम बनाता होगा, वहां के लोग भी अमनपसंद जरूर होंगे. कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि न्यूज़रूम से ही पाकिस्तान पर चढ़ाई हो जाएगी. हमने बुद्ध दिए, लेकिन ये भी तो कहा कि घर में घुसकर मारेंगे.
हम चंद दिनों में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाएंगे लेकिन बच्चा बच्चा इन रिपोर्ट्स की वजह से पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा रहा है. पाकिस्तान में आतंकवाद खत्म हो ये आवश्यक है. पाकिस्तान खत्म करने के मनसूबे निश्चित तौर पर अनैतिक हैं. पाकिस्तान को भी जम्मू-कश्मीर की लालच को छोड़ना होगा तभी बात बनेगी.
इमरान खान से कम से कम ऐसी उम्मीदें नहीं थीं. पाकिस्तान को आतंक पर शिकंजा कसना चाहिए और सबसे पहले ये साबित करना जरूरी है कि उसे भी शांति और बुद्ध पसंद हैं. उसने दुनियाभर में अपनी ऐसी छवि क्यों बना ली है कि उसके राष्ट्र के निरपराध लोगों पर भी आतंक का काला धब्बा लगाया जा रहा है.
जब बच्चे पेशावर स्कूल में मरे थे तो दुख पूरी इंसानियत को हुआ था. ताज पर ब्लास्ट हुआ तुम लोगों ने इसके दोषियों की खातिरदारी की. खून इन बातों पर खौलता है. लेकिन फिर भी मैं पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे नहीं लगा सकता. क्योंकि मुझे ना जाने क्यों लगता है कि वहां भी मेरी सोच से मिलते जुलते लाखों लोग होंगे जिन्हें हिंदुस्तान मुर्दाबाद बोलने में तकलीफ होती होगी. मुझे लगा था कि इमरान खान पीएम बनेंगे तो चीजें सुधरेंगी. लेकिन मैं गलत था.
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