30 सितंबर की डायरी से

बिचले दादाजी यानी बाबा बताते थे कि जब 1955 में बहुत बड़ी बाढ़ आई थी. उतनी फिर कभी नहीं आई. आजमगढ़ शहर की ज्यादातर सड़के डूब गई थी. हमारे घर से 1 किमी दूर होगी सिलनी नदी. लेकिन कभी गांव के भीतर पानी नहीं घुसा. मेरे होश में भी कई दफा बाढ़ आई, लेकिन वो बागीचा(घर से 800मी. दूर) से वापस लौट गई. बाबा ने ये भी बताया कि भैया गांव के मुखिया थे तो इसलिए जब बाढ़ बढ़ने का खतरा बढ़ता दिखाई दिया तो पूरे गाँव के लोग फावड़ा लेकर आए. और जिस नारे(नहर और नदी को जोड़ने वाली तराई) से पानी गांव में जाने की संभावना बढ़ती नजर आ रही थी, उसी के संरेख ऊंचा सा टेम्पररी बांध बनाया गया. गाँव वाले मिलकर बाढ़ से तो मेरे गांव को डूबने से 1955 में बचाने में सफल रहे लेकिन मौजूदा वक्त में बाढ़ से तबाही की तस्वीरें सरकार की अपंगता को सबके सामने लाकर रख देती है. बाढ़, निश्चित तौर पर प्राकृतिक आपदा है. लेकिन इससे आबादी वाले इलाके को बचाना इतना भी मुश्किल नहीं है.

नदियों का एक पारितंत्र होता है. मुख्य नदियों से निकलने वाली छोटी नदियों के मुहाने से सटे इलाकों में बाढ़ का खतरा होता है. बढ़ती आबादी की वजह से लोगों ने नदियों को पाटकर घर बनाया. जिसका असर, नदियों की कुल धारिता पर पड़ा. वे सकरी होती गई. जिलों में बांधों के पुनर्निर्माण का काम बंद सा हो गया. जिसकी वजह से सैलाब तबाही मचाने में कामयाब हो रहा है.बिहार की राजधानी पटना समेत 13 जिले बाढ़ से गंभीर तरीके से प्रभावित हैं. इसके बावजूद सुशासन बाबू को ये पूरी तरह से प्राकृतिक दिखाई देता है.

सुशासन, जंगलराज से जलराज का सफरनामा तय कर चुका है. लोगों के घर डूब रहे हैं. यूपी में 80 लोग बाढ़ और तेज बारिश की वजह से मारे गए. भारत में जिंदगियां बहुत ही सस्ती हैं. लेकिन जो मरे नहीं और बेघर हो गए, उनके लिए तत्काल प्रभाव से कोई कदम उठाया क्यों नहीं जाता? ये पानी भी बड़ा पापी है! कभी तो पीने को नहीं मिलता तो कभी ऐसे फैलता है, जैसे इसके अलावा दुनिया में कोई और तत्व है ही नहीं.
(बदलाव की उम्मीद के साथ)

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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