काश ईश्वर ने मुझे इतना बड़ा कलेजा दिया होता, कि मैं इस सदमे को आसानी से सह पाता. चाची भी तो मां ही होती हैं. भावुकता ही मेरी मजबूती और कमजोरी दोनों है. जज्बातों का कोई सिरा नहीं होता, उसे कहीं भी सुकून मिल जाता हैं और इसके गुजर जाने के बाद तड़प अस्तित्व पाता है. त्रासदियां इंसान को तोड़ के रख देती हैं. जब घर में बंटवारा नहीं हुआ था, उस समय विमला चाची ने भी हमें पाला था. हमारे संवर्धन में उनका भी हाथ है. कल शाम अनुपमेय भैया ने जब ये जानकारी दी तो अवाक् सा रह गया. अम्मा फोन पर आई और रोने लगी. अभी क्या उम्र ही थी उनकी.कीबोर्ड पर उंगलियां बैठ नहीं रही थी, अजीब कंपन सा हो रहा था. फिर बड़ी भाभी का फोन आया, उन्होंने भी बताया और कहा कि परेशान ना हो. चाची के दुलार और स्नेह के हम ताउम्र आभारी रहेंगे. स्मृतियों के एक कोने में उनके द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द अनायास ही गुंजायमान हो रहा है. ‘अरे पूता, तू… इसके बाद वो भोजपुरी की कई लोकोक्तियों का भी इस्तेमाल करती थी.
मुझे याद है एक बार मुझे तेज बुखार हुआ था. अम्मा मामा के यहां गई थी. चाची घंटों तक मेरे पास बैठी रही और मुझे सुलाने की कोशिश में लगी रही. कुछ भी हो लेकिन उनका एहसान हम कभी चुका नहीं पाएंगे. पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि उनकी बोली एक बार फिर से सुन लूं. लेकिन ईश्वर ने जो किया वो घोर अनैतिक है. प्रतिमा दीदी और विभु भैया की ही तरह विपुल भैया और रानी की शादी करने और देखने की उनकी अरदास अधूरा ही रह गई. अश्रुपूरित श्रद्धांजलि और नमन