बलात्कार, किसी महिला की मर्जी के बिना सेक्स करना ही तो होता है. भारत में 50 फीसदी पति अपनी पत्नियों का रोजाना रेप कर रहे हैं. जी हां, चौकिए मत ये बिल्कुल सही बात है. पुरूष जमात, महिलाओं से प्यार तो करता है लेकिन उनका सम्मान कहाँ करता है. सड़क पर चलते वक्त उसकी आँखें भेड़ियों की तरह हो जाती हैं.
बलात्कार करने और होने की शुरुआत यहीं से होती हैं. फिल्मों में फैली अश्लीलता भी इसके लिए कारण हो सकता है. प्रियंका रेड्डी के रेप में सभी कसूरवार हैं क्योंकि दो पुरूष जब आपस में लड़ रहे होते हैं तो बीच में पता नहीं कहाँ से मां, बहन के साथ भाषायी बलात्कार शुरू हो जाता है, इन्हें सिर्फ गालियां मत समझिए ये मानसिकता है. चूतिया, भोषडीके, माधरचोद ये सब सामान्य वार्तालाप में प्रयुक्त होता है. कोई किसी का विरोध नहीं करता.
चार पुरुष बैठ कर एक महिला का चरित्र तय करने वाले कौन हैं, इसी समाज के लोग! हमारे और आप में से बहुतेरे. ये भी आपराधिक है. अगर तुम्हारे संस्कार में ऐसी बातें हैं कि महिलाओं का आदर करना चाहिए. अपनी मर्यादाओं में रहना चाहिए. तो तुम्हारे दोस्त तुम पर उपहास करेंगे. कहेंगे कि देहाती और गवार है क्या?
मैं किसी को प्यार करने से नहीं रोक रहा लेकिन मेट्रो में चिपको आंदोलन चलाने वाले लोग बेलिबास होकर प्यार का मजाक बना कर रख दिये हैं. इसके दर्शक ये समझ बैठते हैं कि यहां कि लड़कियां सेक्स के लिए बेचैन रहती हैं.
सरकार और पुलिस ने इसकी रोकथाम के लिए जो किया है सभी जानते हैं. इतने संवेदनशील विषय पर नेताओं ने कहा है कि लड़के हैं गलतियां हो जाती हैं फांसी पर चढ़ा दें क्या? फिर भी अगला लोकसभा में शान से बैठता है. सलमान खान फिल्म शूटिंग में इतना थक जाते हैं कि उन्हें लगता है कि उनके साथ रेप हुआ है, फिर भी फिल्में सुपरहिट जा रही हैं! आर्मी पर्सन तक टीवी पर चिल्ला कर कहते पाये गए कि रेप के बदले रेप. आपने सुना नहीं है संवेदनशील पुलिस रेप की शिकायत पर FIR तक नहीं लिखते. आंदोलन सिर्फ बलात्कारियों के खिलाफ लड़ने से नहीं होगा, ऐसी सामाजिक मानसिकता के खिलाफ भी लड़ाई की जरूरत है.
मुझे ये सब(गालियां वगैरह) लिखने में थोड़ा बुरा तो लग रहा है लेकिन मानिए या ना मानिए बलात्कार करने का मनसूबा हमारे समाज में लोगों की मानसिकता में ऐसे ही प्रवेश करता होगा.
(शब्दों की मर्यादाएं तोड़ने के लिए माफी दे दीजिएगा)