मुझे पता नहीं है कि आखिर प्यार क्या होता है. लेकिन अपने अब तक के जीवन में प्यार की कई प्रावस्थाओं को बड़े नजदीक से पढ़ने, जानने, देखने और समझने की भरपूर कोशिश की है. इंसान की उम्र ही कितनी है, यही कोई सौ एक साल.. लेकिन प्यार का अस्तित्व अनादिकाल से है.
धर्म से प्राचीर है प्रेम. मुझे लगता है कि प्रेम आदर्शों का पालन करने के लिए जिन नियमों की जरूरत धर्म प्रवर्तकों को जान पड़ी. वही नियम समयांतर में सनातन, इस्लाम, बौद्ध, सिख, यहूदी और जैन के तौर पर हमारे सामने है. इसका मतलब तो यही हुआ कि प्रेम घोर धार्मिक है.
ऐसा भी कह सकते हैं कि प्रेम महाधर्म व्यक्ति प्रतिपादित धर्मों का गंतव्य है. ऐसे स्थायी और शाश्वत व्यवस्था को आधुनिकता दिन ब दिन निगलती चली जा रही है. हमारा प्रेम कितना मलीन और अवसरवादी है कि छोटी बातों पर महाधर्म पर चलना छोड़ अपने महत्व की इच्छा से ग्रसित होकर संवाद छोड़ देते हैं.