तुम्हें क्या लगता है कि मौजूदा सरकार को तुम्हारी फिक्र है, बिल्कुल भी नहीं. अगर ऐसा होता तो वो तुम्हें बुनियादी सुविधाओं से महरूम कभी ना रखती. उसे तुम्हारी चिंता होती तो तुम्हारे बच्चों को नौकरियां दिलवाती. शिक्षा संकायों पर बजट से ज्यादा पैसे रिलीज करती. देश की अर्थव्यवस्था की विकट स्थिति के बीच वो तुम्हें साम्प्रदायिक विद्वेष के नाम पर लड़वाती कभी भी नहीं. तुम आपस में लड़ रहे हो और मर रहे हो लेकिन वो बैठ के तमाशा देख रही है. गौर से सुनो ‘तुम्हारी मौत का तमाशा देख रही है’..
सबसे बड़ी समस्या यही है कि तुम नेताओं पर अंधविश्वास कर लेते हो. याद करो.. अभी कुछ महीने पहले ही सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने बयान में कहा था कि यूपी में नौकरियों की कोई कमी नहीं है, उसके लायक कुशल युवा नहीं है. कितनी दोयम दर्जे की राजनीति हो रही है इसे बैठ के समझने की जरूरत है. गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सैकड़ों बच्चे प्रशासन और सरकार की लचर व्यवस्था की वजह से मारे गये. बिहार में भी स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली देखी गई. जापानी बुखार की वैक्सीन के लिए जो देश पूरी तरह से चीन पर निर्भर है. वो किस प्रकार आत्मनिर्भर कहा जा सकता है. इस बीच साम्प्रदायिक मनसूबों को भुनाने की कोशिशें क्यों की जा रही हैं. इसे समझिए…
असम में मोदी सरकार ने एनआरसी लगाया.. लेकिन वहां उसका दांव उलटा पड़ गया. मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं की संख्या ज्यादा पाई गई. तो उसे नागरिकता कानून का खयाल आ गया. मेरा दावा है कि आंकड़ा निकलवा ले सरकार, भारत में मुसलमानों से ज्यादा बेरोजगार हिंदू मिलेंगे. बहुसंख्यकों के नाम की राजनीति करना आसान है, लेकिन उसकी परिस्थितियों को समझना बेहद मुश्किल.
भारत में करोड़ों योग्य युवा बेरोजगारी का दंश झेलने के लिए मजबूर हो रहे हैं. अपराध को नियंत्रण में रख पाना और सुरक्षा देना सरकार के बस में नहीं रहा. धार्मिक मदांधता की चिनगारी में जलने और जलाने से बेहतर ये होगा कि आंख-कान खोल के देखो कि तुम्हारा हित कहां है, नागरिकता कानून में या फिर बेहतर जीवन स्तर के अधिकार में..
– धन्यवाद