देश में सांप्रदायिक आधार पर भेदभाव की मनाही है. नेताओं को सीधे तौर पर हेटस्पीच ना देने को कहा गया है, वे नहीं मानते. पत्रकारों के लिए मीडिया एथिक्स और लाॅ है. वे नहीं फाॅलो करते. एजेंडा और न्यूज़ में बहुत बड़ा फासला है.
बता दिया गया कि पालघर हत्याकांड एक अपराध है और उसमें पुलिस की लापरवाही थी. लेकिन उसे लेकर ट्विटर पर सोनिया गांधी को बार गर्ल बोलने की रवायत अर्नब गोस्वामी के एजेंडे का नतीजा है. उन्नाव रेपकांड में योगी का इस्तीफा क्यों नहीं मांगा अर्नब ने. गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस से सरकार की लापरवाही पर सवाल क्यों नहीं पूछा अर्नब ने.
अर्नब केंद्र सरकार से क्यों नहीं पूछ रहे कि उसकी फ्लाप नीतियों का क्या हुआ? अर्नब को इस बात की जिज्ञासा क्यों नहीं हुई कि एटा में एक स्वास्थ्य अधिकारी के पूरे परिवार की हत्या क्यों हुई और कैसे हुई. इंस्पेक्टर सुबोध सिंह को किसने मारा?? लेकिन जब पूरा परिवार बीजेपी में शामिल हो, तो उसका एजेंडा तो चलाना पड़ेगा ना.
हैरानी इस बात पर हो रही कि तमाम पत्रकार उनके लिए स्टैंड कर रहे हैं. इतनी एकजुटता पत्रकारों ने एम एम कलबुर्गी हत्याकांड पर भी नहीं दिखाया होगा जितना अर्नब गोस्वामी के इंट्रोगेशन पर दिखा रहे हैं. उनकी तटस्थता इस बात को साफ कर रही है कि एजेंडा न्यूज़ के खिलाफ उनका कोई कदम नहीं है. वे जहाँ जा रहे हैं उसके आगे घोर उन्माद और अपराध को प्रोत्साहित करते रहने का बसेरा है.