नये सफर के पड़ाव पर हम,
पुराने पल को पलट रहे हैं.
मेरे ज़ेहन के दीवार पर;
उस शहर की मिट्टी पटी पड़ी है!
जहां पर मैंने जनम है पाया,
जहां की माटी को सिर लगाया.
हुआ बड़ा जिस जगह का खाकर,
बहुत निराला वो आजमगढ़ है.
मेरे लड़कपन का जो शहर है.

बहुत ही अद्भुत जमीं है अपनी,
अत्रि मुनी की तपस्थली है.
अनुसूइया के महान बेटे;
चंद्रमा, दुर्वासा-दत्तात्रेय.
जहां की किर्ति है घोर वैदिक,
जहां पर रचना प्रथम हुई थी.
बहुत निराला वो आजमगढ़ है.
मेरे लड़कपन का जो शहर है!

आदिकवि वाल्मीकि एक दिन,
गये थे मिलने चंद्रमा जी से.
जहां पे ‘तमसा’ मचल रही थी,
नदी के तट पर बहेलिए ने,
एक क्रौंच पक्षी को मार डाला;
उसी के गम में क्रौंची ने भी,
रोते-रोते ही प्राण वारा.
सहा नहीं ये गया ऋषि से;
बड़े ही क्रोधित हुए वे उस पर!
भरे हुए वेदना से प्रभु ने;
मा निषाद प्रतिष्ठाम:
काव्य से, श्राप दे डाला!
कंठ से फूटा वेदना से भरा,
फिर बह्मर्षि आए बताने लगे.
ये अलौकिक हुआ है महर्षि प्रथम,
तुम रचयिता बने इस धरा के प्रथम.
बहुत निराला वो आजमगढ़ है.
मेरे लड़कपन का जो शहर है!

अज्ञेय और सांकृत्यायन ने तो,
साहित्य के पथ को सुरम्य करके.
नये-नये प्रतिमान गढ़ के,
धरा को साहित्य का गढ़ बनाया!
बहुत निराला वो आजमगढ़ है.
मेरे लड़कपन का जो शहर है!


कैफी आजमी का शहर, फ्रैंक इस्लाम का!
उर्दू दर्शन की ‘मारीफ’ पत्रावली.
शिब्ली नोमानी का ‘नेशनल’ का मिशन,
खूबसूरत बहुत है शबाना का गढ़.
बहुत निराला वो आजमगढ़ है.
मेरे लड़कपन का जो शहर है!

एक शहर जिसने अंग्रेजो के जबड़े पकड़;
युद्ध की घोषणा का किया था पहल!
साल 1857 की इस चुनौती के बाद फिर,
सूरवीरों से लड़ने ना आया कोई.
बहुत निराला वो आजमगढ़ है.
मेरे लड़कपन का जो शहर है!
