मन हुआ कि एक सुनहरी शाम लिखी जाए. बीते हुए पल ढलने के बाद शाम की ही तरह दिन के ताप को और रात की शीतलता के मध्य सुकून के भावी क्षण पैदा करते हैं. ये भावी क्षण कितने मासूम होते हैं ना. बात कुछ तीन-चार साल पुरानी है. 27 लोगों का एक जत्था आईटीएमआई के ब्राॅडकास्ट जर्नलिज्म में अपने मानिंद सपने संजोकर आया. ये सिर्फ सत्ताइस लोग नहीं, सत्ताइस अजूबे हैं. सब के सब रंगीन, मस्तमौला, फक्कड़ और घोर प्राकृतिक. इतने सहज की पानी और दूध को वगुले की तरह एक ही तरह का पेय समझकर गटक जाए और इतने जहीन की हंस की तरह दूध का दूध और पानी का पानी कर दें.
यही सरलता इन्हें विशेष बना देती है. उस समय आईटीएमआई के डीन शशिधर सर थे, कुछेक लोग तो कहते कि शशिधर सर की इंग्लिश पढ़ाते-पढ़ाते; एक जगह जाकर इतनी कठिन हो जाती कि लगता कि बीच के कुछ शब्द डिक्शन कर लिए जाए. भरोसा कीजिए हम तो 30 फीसदी उनकी बातें हेडर और हावभाव से ही समझ पाते. खैर, शशिधर सर वैल्यूज के बहुत पाबंद दिखते. लेकिन बीच-बीच में खुद को इतने आसान कर लेते कि लगता कि सर नहीं कपिल शर्मा अपना शो छोड़ हंसाने आ गये. ये डीन सर की सबसे बड़ी विशेषता है.
हमारी बैच के अतीत को अगर एक एकांकी में तोड़ा जाए. और पूछा जाय मुख्य पात्र कौन? तो बिना रुके मेरा जवाब होगा रमन जायसवाल. जितना मैं समझ सका सभी को जोड़ने वाले फेविकोल की भूमिका में रहता रमन. अबे छोड़ो बे. तू अपना भाई है. सभी अपने भाई हैं. ये कोई बात किसी को कही सुनाई गई नहीं है. ये हमारे रमन का आमतौर पर किया जाने वाला अभिवादन है. आप सभी ने मेसान के बारे में पढ़ा होगा. न्यूक्लियस में इलेक्ट्रॉन और प्रोट्रान के बीच तकरार को सुलझाने का काम मेसान का होता है. रमन पूरे बैच का मेसान कहा जाना चाहिए.
दूसरा नाम लेने में थोड़ी दुविधा हो रही है. लेकिन अब कौन सा ग्रुप्वाॅयड होने का खतरा होगा? बैच के दूसरे सबसे चहेते शायद निशांत भारद्वाज रहे. राजनीति में किसी को कुछ समझ ना आए तो निराकरण निशांत करते. इन्हें तो ये भी पता होता कि जेपी के आंदोलन में कितने बिहार के लोग आए थे और कितने गुजरात! अरे नहीं, एवैं बोल गया. लेकिन निशांत की राजनीतिक टाॅपिक पर आउटस्टैंडिंग पकड़ होती.
तीसरा नाम ज्योत्स्ना गुप्ता जी का. अब जी हटा दूं तो उस दौरान जितनी बार जी बोला था. उसके साथ नाइंसाफी होगी. इनकी खासियत तो फेक एक्टिविटीज पर भड़क जाती थी. मशवरा लेना हो किसी तरह का तो ज्योत्स्ना हमेशा मुस्तैद रहती. एक बार तो ये किसी को डांट रही थीं और पीछे मैं बैठा था. उनकी तेज आवाज से तो मैं डर ही गया. लेकिन फिर उनकी बातों के साम्य से समझ पाया कि गुस्सा क्षणिक होता है. इनके यहां ज्यादा देर तक नहीं टिकता.
इसके बाद स्वाती पांडेय, इसलिए कि दो लड़के हो गये तो दो लड़कियों को भी बताया जाए. नहीं तो इस ब्लाॅग को पढ़ने वाले लोग जेंडर इन इक्वैलिटी का आरोप मेरे सिर मढ़ देंगे. स्वाती के बारे में हिंदी भाषा में लिखना मतलब अपनी तौहीन कराना. हिंदी में स्वाती मास्टर्स की हुई हैं और मैं बमुश्किल इंटरमीडिएट. जो भी पढ़ा-लिखा सब स्वाध्याय के बदौलत. फिर भी जब बीड़ा उठाया है तो पूरा तो करना ही पड़ेगा. कुल मिलाकर स्वाति की खासियत यही रही कि वो सबको सपोर्ट करती अलबत्ता अगला यथार्थ के सामने सीधा और सटीक हो.
अरे यार! ये नितिन सिंहवा तो छूट ही रहा है. थोड़ी सी चूक हुई और दूसरे नंबर का घोड़ा पांचवें पर चला आया. हरफनमौला. शायद कैमिस्ट्री के मैकेनिज्म में तमाम रिएक्शन पढ़ा लेकिन बटरिंग फेनामेना का ज्ञान मुझे नितिन सिंह से मिलने के बाद पता चला. ये स्टार परिवार के मुखिया भी रहे. स्टार परिवार के मनोनीत सदस्यों की संख्या चार है. गौतम, तरन, शिवानी और ये स्वयं. पहले तो इसका क्रियाकलाप बिल्कुल पसंद नहीं आता लेकिन बाद में नितिन-इफेक्ट मुझ पर भी काबिज हो ही गया.