((कोई भी चीज़ चलन से बाहर नहीं होती. अपना बचपन याद कीजिए. हर मां अपने बेटे को उंगलियां पकड़कर चलना सिखाती है. बड़े होने के बाद भी कदम-कदम चलने की प्रेरकता हमेशा बनी रहती है. फिर चाहे मोटर विहिकल और फ्लाइट्स ने आकर चलने का काम आसान कर दिया लेकिन कदम-कदम चलना हर युग में जीवंत रहेगा. वैसे ही वेब सीरीज़ के दौर में मैं संस्मरण लिख रहा हूँ क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि चाहे कितना भी डिजिटल एरा आ जाए. बुनियादी बात है कि लेखन हमेशा जिंदा रहेगा.))
बात ITMI में बिताए उन दोस्तों की. जिन्होंने हर कदम हमें चलने में सहयोग किया. देश के लोकप्रिय व्यंग्यकार और अर्थशास्त्र के विद्वान आलोक पुराणिक से हमें बिजनेस जर्नलिज्म पढ़ने का अवसर आईटीएमआई ने दिया. पुराणिक सर की पहली क्लास. सेकेंड हाफ में भी अब अटेंडेंस लिया जाने लगा था. सबका नाम तो उन्होंने ठीक-ठीक लिया. अचानक गलती से उन्होंने कल्याणी नाम लेकर पुकारा. पूरा क्लास ठहाकों से भर रहा था. पुराणिक सर अपने अंदाज में सुनिए-सुनिए कर रहे थे. लेकिन हमें समझ नहीं आ रहा था कि ये कल्याणी कौन है. सुधीजन! वो कल्याणी नहीं खयाली चक्रबर्ती हैं!

खयाली और मुझमें एक समानता है. हम बेहद संकल्पवान लोग हैं. एक बार जो ठान लेते हैं, उसे अंजाम तक ले जाने में कोई कोताही नहीं बरतते. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उनका बेहतरीन डांस और मेरी कम लाइक्स वाली कविताएं तो आप देखते ही होंगे. गजब की नृत्यकला है उसमें. मुझे बहुत पसंद है उनका डांस. अब देखिए डांस की तारीफ कौन रहा है, जिसका खुद आंगन टेढ़ा है. नहीं आता डांस हमें. पर एक दिन जरूर डांस सीखेंगे. क्योंकि मुझे सारी कलाओं से बेपनाह मोहब्बत है. जब डांस सीख लूंगा तो बड़ा डांसर बन के लोगों से कहूंगा मुझे डांस करने की प्रेरणा खयाली चक्रबर्ती जी से मिली. खैर, मैंने जिस तरह अपनी कविताओं की पगडंडी संभाली है उसी तरह खयाली अपने रिहर्सल को डेली बेसिस पर करके अपनी दिलचस्पी का दायरा सुनिश्चित करती दिखाई देती हैं.

मेरी कविता तमाम आलोचनाओं के बाद भी जारी रखी गई. साहित्य से मुझे बेपनाह प्यार है. इसलिए अगर भनक भी लग जाए कि कहीं साहित्य की खुशबू आ रही है तो भागा चला जाता हूँ. कोई कुछ अनहद लिखना चाहता है तो मैं उसकी तारीफ जरूर करता हूँ. अपने व्यस्ततम जीवन में वैसे भी कौन समय निकाल पाता है. खयाली की एक कविता जो उन्होंने मुझे दिखाई थी. ठीक सुभद्रा कुमारी चौहान के लहजे में लिखी गई लग रही थी. मैं खयाली की रचना पढ़ने के बाद अवाक रह गया. और उस समय मैंने उनसे कहा भी कि अगर लिखना जारी रखा तो बहुत दूर नहीं है साहित्य का आसमान.

खयाली में एक खासियत ये भी है कि वो बहुत जिज्ञासु रहती हैं. खबरों और उनमें आलोचनाओं के बिंब वो आसानी से ढूंढ लेती हैं. एक सेशन में श्रीलंका के कुछ मशहूर पत्रकार को बुलाकर हमें आलोचना सिखाया जा रहा था. वे लोग आलोचना के बारे में बहुतेरी बातें बताएं और वर्तमान में आलोचना की सही समझ और उसके गिरते स्तर पर चिंता भी जाहिर किये. लेकिन मुझे लगता है कि आलोचक सम्राट रामचंद्र शुक्ल के सिद्धांतों के सामने वो गौण रहा. आलोचना का मतलब विरोध नहीं होता. बहुत पहले जब हमारे यहां ग्रंथ लिखे जाते थे. तो उसकी आलोचना के लिए उस ग्रंथ की टीका आती थी. उसमें ग्रंथ की खासियत और कमियां एक साथ गिनाई जाती थी. खामियों और खासियत के बीच का जो सामंजस्य है, उसी को आलोचना कहते हैं. और मैं जितना खयाली को समझ पाया हूं अब तक. वो एक व्यवहारवादी आलोचक हैं. अच्छा स्केच भी बना लेती हैं.

खयाली चक्रबर्ती से पहली मुलाकात अब भी याद है. हम पांच-सात लोग थे साथ में. गौतम ने बताया ये खयाली हैं. खयाली का पहला सवाल- कैसा चल रहा है अभिजीत. मेरा जवाब ‘ठीक ही है सब’. खयाली ने फिर पूछा कहां से बिलाॅन्ग करते हो. मैंने कहा, बताया तो था क्लास में.
-अरे मैं भूल गई फिर से बताओ.
– मैंने सिर्फ आजमगढ़ नहीं कहा बल्कि साथ में ये भी बताने लगा कि वही आजमगढ़ जहां के राहुल सांकृत्यायन ने यात्रा वृत्तांत की 169 किताबें लिखीं. अज्ञेय और मशहूर गजलकार कैफी आजमी का शहर है आजमगढ़.मुझे लगता है कि आजमगढ़ के बारे में लोगों ने गलत अवधारणाएं बना लिया है इसलिए मुझे आजमगढ़ की आत्मीयता का ज़िक्र हर जगह करना पड़ता है. मैंने तपाक से खयाली से भी यही सवाल पूछ लिया. खयाली तुम्हारा शहर क्यों मशहूर है. उसने कहा लेक की वजह से. मैंने पूछा और कुछ? तभी अपने अंदाज़ में गौतम आया. और कहने लगा पहली मीटिंग में किसी लड़की से ऐसे सवाल पूछे जाते हैं अभिजीत? मैंने कहां क्यों नहीं बात ही तो कर रहा था. गौतम हंसते हुए – चलो बेटा तुम्हें पीजी में समझाते हैं. अब रास्ते भर गौतम ने मुझे कोसने में कोई कमी नहीं छोड़ी. वाह पाठक वाह, खयाली को पका दिया तुमने. और ना जाने क्या-क्या? लड़कियों से पहली दफा मिलने पर क्या बात करनी चाहिए इस पर गौतम का टेप चलता रहा… और मैं चुपचाप सुनता रहा.
गौतम पीजी में वापस आकर- “इंटरव्यू लेने गये थे खयाली का? पका दिया लड़की को”. फिर तो जब भी मेरी खयाली से बातें हुई होंगी. बस जरूरत की ही बातें हुई होंगी. खयाली अगर कुछ पूछती तो अब सीधा जवाब देता. उसके अलावा कुछ बोरियत जैसा नहीं बोलता. मैं हमेशा एक बैचमेट की हैसियत से खयाली की कुशलता और उज्जवल भविष्य की कामनाएं करता हूँ!