((हमारे बैच में रचनात्मक लोगों की कोई कमी नहीं थी. और संवेदनशील रचनात्मकता की कोशिश जुहाने वाला कोई बैचमेट मिल जाए. अहा! फिर तो पूछिए ही मत. इसका मतलब ये समझ लीजिए कि घनघोर जंगल में किसी ने सभ्यता की कुटिया बना दी हो.))

स्मृति सिंह चंदेल! एक नाम जिसको सुनते ही मन में आदर और स्नेह का बादल घिर जाता है. चाहे स्मृतिजी की फोटोग्राफी हो, कविताएं हो या फिर एसिड अटैक पीड़िताओं पर बनाई डाॅक्यूमेंट्री सृजन्या! ये सभी आपको उनके मनों की असीम गहराई का आभास करा देंगे. जब उन्होंने सृजन्या का ट्रेलर पहली दफा क्लास में जारी किया. चंद समय की तालियों की गड़गड़ाहट आज भी उस परिसर में गुंजायमान हो रही होगी. अविश्वसनीय काम रहता है उनका.

बकौल हेमंत सर- ‘तुम्हारी बैच में अगर कोई सबसे ज्यादा मेच्योर और बुद्धिमान है; तो वो स्मृति है.’ मुझे लगता है कि स्मृति दी ही एक ऐसी शख़्स हैं जिन्हें मैंने गुस्से में कभी देखा ही नहीं. हां, एक बार गजब फायर हुई. भरत भूषण शांडिल्य पर. दरअसल, हुआ ऐसा कि मैंने एक कविता फेसबुक पर डाला. फिर भरत क्लास में आया और मैं अपनी कविता स्मृति दीया को दिखाने बैठा था. उसने कहां, ये क्या लिखते हो? इसका मतलब क्या है! मैं भरत को समझा ही रहा था कि वो फाॅर्म में आ गया. अब मैं ठहरा महात्मा. मैं अब भी भरत को कह रहा हूँ कि चुप हो जाओ. फिर क्या था स्मृति दी गुस्से में आ गई. भरत को ढंग से डांट लगा दिया. बोलीं कि हमें पता है अभिजीत की काबिलियत! मैं तो फूले नहीं समाया और बेचारा भरत मुंह लटका के चला गया. मैं इसमें अपनी किर्ति का बखान नहीं कर रहा. लेकिन हर समय मुस्कराहट से भरा जो चेहरा आप स्मृति सिंह का देखते हैं. वो गुस्सा भी जबरदस्त करती हैं. इसका भान आपको कराना मकसद है.

स्मृति दी जितना केयरिंग तो घर वाले ही होते हैं. एक वाकया है इंटर्नशिप के समय का मुझे जरा सा बुखार क्या हुआ. स्मृति दी ने तो अपने सिर पहाड़ उठा लिया. बैग से दवा लेकर आई. दौड़कर डेस्क पर ही पानी भी लाई. बोलीं- तू अभी छुट्टी लेकर घर जा.

इतना अपनापन पाकर भी अगर मैं कहूं कि ITMI और मेरे बैचमेट्स मेरे लिए घर के सदस्यों की तरह नहीं रहे तो मैं सत्य का दोषी ठहराया जाऊंगा. मुझे लगता है कि यादद्दाश्त की किश्तों को लिख देना भर मुकम्मल नहीं होता. उन कारणों को ताउम्र जीने की कुव्वत भी रखना बेहद जरूरी है.