((दोस्ती में बाध्यताएं ना हो तो कभी-कभी अच्छा भी लगता है और बुरा भी! इसमें थोड़ा सामंजस्य बिठा के रखा जाए तो दोस्ताना खूब लंबा चलता है. आशिकी की उम्र होती है दो दशक. दोस्ती ताउम्र करनी होती है.))

एक संस्कृत का सुभाषित है. मृगा: मृगैः संग्रमनुव्रजंति. इंग्लिश वाले इसे ‘like dissolve like’ लिखेंगे. हिंदी वाले एक शब्द में संगति कहेंगे. आप लोग संगति का मतलब समझ लीजिए. जिसके साथ आप रहते हो. दो चीजें हमारे व्यक्तित्व पर सीधे तौर पर असर करती हैं. एक तो परिवेश यानी प्राकृतिक प्रभाव और दूजा वैयक्तिक प्रभाव यानी संगति. संगति माने व्यवहार की समानताएं जहां जाकर समझौते के फेहरिश्त से बाहर आने के लिए बाध्य नहीं होती.
मैंने ITMI के पूरे 6 महीने जिन संगतियों में बिताए, उनमें सबसे ऊपर मयंक पटेल आता है. आप संवेदनशील हो तो एक दोस्त मयंक जैसा रखिए जो आपकी संवेदनाओं का कद्र करे. उचित सलाह दे. और अपना हाथ ना खींचे. जब कभी मैं किसी बात पर उससे असहमत होकर बैठ जाता. तो उसका दिल गुरूर की पर्वत श्रृंखलाओं पर बैठ जाता. ऐसा कभी नहीं हुआ. ‘अभिजीत यार क्यों परेशान हो. लड़कियों की तरह ऐसे मुंह बनाकर मत रहा कर. इतने पर तो मेरा नारीवाद जाग जाता. और नारीवादी विचारक जाॅन स्टुअर्ट मिल की किसी विचार को उसे सुनाकर लड़कियों को लेकर उसकी सामाजिक अवधारणाओं का खंडन करता. फिर गिले शिकवे कहीं गुम ही हो जाते.

मयंक के साथ बिताएं हर पल एक सुनहरे वक्त के तौर पर मेरी डायरियों में दर्ज है. मैंने कई बार नोटिस किया कि वीडियो विज्ञापन को लेकर मयंक की खासा दिलचस्पी है. वो एक साल पहले से उस पर काम करना चाहता है. उसने कई आइडियाज़ तो मुझ से भी साझा किए. ऐसा लगता है कि मयंक के भीतर CATALISM यानी लोगों को मोटिवेट करने की भरपूर शक्ति है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे लोग धरती पर 0.0001 फीसदी भी नहीं हैं जो उत्प्रेरणा के लिए काम करें. मेरे हिसाब से उसे वीडियो विज्ञापन की अपनी दिलचस्पी को बरकरार रखने की जरूरत है. हेमंत सर क्लास में हमेशा कहते ‘देखो! जिस दिन ना तुम्हारे भीतर का विद्यार्थी मर गया, तुम समाप्त हो जाओगे. यही बात मैं अपने सबसे जिगरी दोस्त मयंक से कहना चाहता हूँ.

जब सागर लांघना था तो हनुमान को अपनी शक्ति भूल गई. कहते हैं एक मुनि ने उनकी उद्दंडता पर श्राप दे दिया था. तो जामवंत ने हनुमान को मोटिवेट किया. कहा- ‘कवन सो काज कठिन जग माही! जो नहीं होई तात तुम्ह पानी!! माने कोई ऐसा काम ही नहीं जो तुम कर नहीं सकते. जिसके बाद जामवंत को उस समय CATALISM PERSONALITY माना गया. मतलब दुनिया में कोई काम मुश्किल नहीं है, अगर आप मानसिक तौर पर उसके लिए तैयार हो. लेकिन एक काम कठिन हो जाता है. अपने हमजोली दोस्त के रूम से आखिरी बैग उठाते समय बड़ी हैरानी के साथ उसके चेहरे को देखते जाना.

पीजी में रहने के दौरान मयंक से निकटता बनी रही. लेकिन वहां से सेक्टर 15 शिफ्ट होने के बाद थोड़ी कम हुई. लेकिन हम लगातार कहीं घूमने की प्लानिंग करते रहते थे. पूरी दिल्ली के पर्यटन केंद्र हमारी यारी की तस्दीक देते हैं. उंगली पर गिनाऊं तो एक पन्ने लग जाएंगे. फिर कथानक का उद्देश्य भटक जाएगा.
मेरा नाम एक चश्मेबद्दूर लड़की के साथ बार-बार जोड़कर सभी मजा लेते. लेकिन मैंने दोस्ती के सिरे के अल्हड़पन को मंजूरी देना जरूरी समझा. चिरसम्मत दोस्ती के सामने उसके विरोध में कभी कुछ नहीं बोला. ये मयंक से मेरी दोस्ती का प्रमाणन है! उस समय संस्थ में बरसाती मेढ़क की तरह कवियों का आना शुरू हुआ. कई लोग क्षणिक कवि बन गए. मुझे ये बेहद अच्छा लगा. लेकिन जब समझ में आया कि ये सब सिर्फ दिखावा है तो बहुत बुरा लगा. व्यक्तिगत लोप वाले उन बुतों से नफ़रत सी होने लगी. इस दौर में मयंक, भोजक और गौतम मेरे लिए संबल बनें.

मैं तो हमेशा समभाव रहता. लेकिन कुछ लोगों ने गलत दुष्प्रचार किया कि अभिजीत हमसे नफरत करता है फलाने को दिल दे बैठा है! वगैरह/ दोस्तों आर्थिक तौर पर जितने समझौते मैंने किए हैं उस लाचारी के साथ महानगरों के विलासी प्यार से ही मुझे घृणा हो गई थी. ये बातें मैंने मयंक के अलावा कभी किसी को नहीं बताया. लेकिन प्रेम की समान स्थितियां सबसे रहीं मेरी. किसी के लिए दामन चाक करने की हैसियत नहीं थी मेरी. छोटे शहर का रहा इसलिए पारिवारिक दायित्वों के लिए हर समय चिंतातुर रहता. वो मयंक ही है जो इन उलझनों से निकालने के लिए बार-बार मेरे चेहरे पर मुस्कान बिखेरने की कोशिश करता.
दरअसल, पूरी प्रकृति ही प्रेम के अनुकूल है. नदियों की धाराएं लाखों सालों से लहरों के साथ जुड़ने का ख्वाब देखती आ रही हैं. जमी की उम्र ही कितनी है. कुल चार मिलियन बरस. इससे पहले से प्रेम है और रहेगा भी. हम और आप कठपुतलियां भर हैं. जितना नाच सकते हैं नाचेंगे. और किसी के बूते में दम नहीं है कि किसी को नियमों के शिखर पर प्यार दे पाए और शर्तों के आधार पर प्यार ले पाए. प्यार इतना मौलिक और स्वायंभुव है हर दौर में उसके आगे दुनिया नतमस्तक हुई है. प्यार अगर होगा तो होकर रहेगा. उसके पीछे भागने की कोई जरूरत नहीं है. ये मेरे विचार हैं!

खैर, आगे बढ़ते हैं. मयंक पटेल की नेतृत्व कला का मैं मुरीद हूं. किसी कमजोर पक्ष को उसने कभी छोड़ा नहीं और मजबूत पक्ष की पैरोकारी नहीं की. ये उसका व्यक्तिगत आदर्श है.
लंच के समय मयंक के पैसों का छोला और वरूण पांडेय के घर से आया स्पेशल पराठा अगर एक साथ मिल जाए तो पूछिए ही मत स्वर्गिक अनुभव. वैसे भी ब्राह्मण हूं. तृप्त करोगे तो परलोक में आनंद भोगोगे दोस्तों. अन्यथा मत लेना, ये तो प्यार है मेरा! मयंक और मेरा हिसाब-किताब ऐसे ही रहता जैसे घर पर अनुपमेय भैया से होता है. लेकिन ना तो कभी मुझे इसकी परेशानी हुई और ना ही मयंक को. छुट्टी वाले दिनों में पार्क में मैच, पीजी में नूडल्ज़ और कोक की पार्टी और हां टफरी वाले की चाय. नहीं भूलेंगे हम, जब तक है जान!