((सुमित ने जितना मेरा साथ दिया, उतना तो मैंने खुद का ध्यान नहीं रखा होगा. उसके जैसे दोस्त मित्रता की आदर्श स्थितियों को आज भी बनाये रखने के लिए जिम्मेदार है. निश्छल मुस्कराहट से भरा चेहरा अगर आपका मन मोह ना ले तो कहिएगा.))
बंदा मीडिया इंडस्ट्री में जितने लोग हिमाचल से आते हैं. सबको जब चाहे फोन लगा देता, और देर तक बातें करता. जिसके बाद मैंने पाया कि जब नाट्यशास्त्र की रचना भरतमुनि कर रहे थे तो क्या सुमित वहां मौजूद था? जो संचारी भाव को खुद में उतार लिया है. महोदय, को बस बता दीजिए कि ऐसा कुछ होने वाला है. साहेब परिणामों तक पहुंचकर अकुलाहट के पारावार को लांघने लगते हैं.

ये बहुत अच्छी बात है लेकिन संचारी भाव की शक्ति को लोग आजकल समझ नहीं पाते. न थकने वाले उत्साह को संचारी भाव कहते हैं. सुमित विशुद्ध पहाड़ी आदमी है. सालों उसके साथ रहा हूँ पर आज भी जस का तस. बिल्कुल भी नहीं बदला. मैं जितने में दो चार शब्द बता पाऊंगा, उतने में तो सुमित आपको पूरा एक किस्सा सुना देगा. बेहद फास्ट पेस है उसकी. मिसाल के तौर पर-
“देख तू अपना भाई है पाठक, तुझसे क्या छिपाना! इस बार नौकरी ना मिली तो भाई कसम से बहुत खराब हालत होने वाली है.”
ये तब का उसका कथन है, जब हम दोनों मीडियाप्लेक्स इंटरव्यू देने आए थे. सुमित से बहुत दिनों के बाद मिला था तो उसे खूब घुमाया-फिराया और ये समझाने की कोशिश की – “घबराते नहीं हैं सुमित. जीवन और संघर्ष एक दूसरे के पूरक हैं. जिंदगी है तो आफतें भी लाज़मी हैं. कुछ ना कुछ रास्ता जरूर निकलेगा. जब घना कुहरा छाया हो तो दूर की नहीं सोचते. एक एक कदम चलने की कोशिश करते हैं.

सुमित, भोजक और मैं जब सेक्टर 15 आए तो उसके बाद कोई ऐसा दफ्तर नहीं बचा. जहां जाॅब के लिए ना पहुंचे हो. रिज्यूम का प्रिंटआउट लिए किसी के अप्रोच से कहीं पहुंच जाते. कुछ नहीं होता तो एक ढारस तो जरूर बंधता. कई बार तो हम और सुमित मंदिर जाते और खूब मन से गणेश की आरती पढ़ते. रूम में बैठकर सुमित का पसंदीदा गाना संदेशे आते हैं सभी एक साथ गाते.
विज्ञानव्रत की एक गजल है-
तपेगा जो, गलेगा वो!
गलेगा जो, ढलेगा वो!
ढलेगा जो, बनेगा वो!
बनेगा जो, बचेगा वो!

तो हम और सुमित तपने की कोई भी गुंजाइश छोड़ना नहीं चाह रहे थे. सुमित की सबसे बड़ी विशेषता है कि वो किसी की बातों को दिल से नहीं लगाता. एक बार क्लास में सुमित बैठा था. शायद लंच का टाइम रहा होगा. मैं पहुंचा ही था तभी एक बैचमेट आकर उससे कह रहे हैं कि सुमित तुम्हें फलाने ने ऐसा बोला. सुमित का जवाब – “हंसते हुए! ओए भाई, जान दे छोड़. क्या रक्खा है इन छोटी बातों में. कह लेन दे उसको भी. तूने भी तो बहुत कुछ कहा है. सबकी बातों का बुरा मानूं तो मानता ही रह जाऊं. ” सुमित के जवाब ने अगले के पास कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा. और वो मुंह लटकाये चला गया.

सुमित की ऐसी निश्छलता का मैं कायल हूं. किसी भी व्यक्ति से किसी तरह का द्वेष ना रखने वाला सुमित हमेशा इसी तरह मुस्कराता रहे और अपने जीवन में तमाम उपलब्धियां हासिल करे!