ITMI संस्मरण: एक ‘वदिया’ सी लड़की !

दीक्षा को बताने की शुरूआत कैसे करें ? पहले ये बता दें कि दीक्षा की विशेषताएं क्या हैं या फिर उनकी दिलचस्पी के दायरे बता दिए जाए. शुरूआत करता हूँ विशेषताओं से. मेरे बैच की लड़कियों में दीक्षा अकेली ऐसी हैं जो इतनी आसान हैं कि उन्हें समझने और बताने के लिए सिर्फ़ एक ही शब्द का इस्तेमाल होना चाहिए ‘वदिया’ सी !

हालचाल पूछने पर अक्सर दीक्षा का जवाब यही होता. इंटर्नशिप का समय था. मुझे और दीक्षा को एक महीने तेज आउटपुट में बिताने थे. बिताने का मतलब ये कि जब आप इंटर्नशिप कर रहे होते हैं तो कुछ सीखने की ललक होती है. और जब प्रशिक्षक के जिम्मे ही जिम्मेदारियों का बोझ वृहत हो तो सीखाए कौन? खैर, दीक्षा इतनी टेक्निकल फ्रेंडली हैं कि उन्हें चीजें एक बार में समझ आ जाती लेकिन मुझे पल्ले ना पड़ती. कुछ दिन लगे तो किसी तरह वीडियो एडिटिंग टूल वेलाॅसिटी पर कुछ जरूरी काम तो सीख लिया लेकिन अब सवाल ये कि उस काम में एक फीसदी भी मन नहीं लगता, लेकिन दीक्षा उसे आसानी से कर लेती. अब बताओ दीक्षा! इससे उदार कोई दोस्त होगा इस ब्रह्मांड में जो खुद को जमा और तुम्हें अक्लमंद बताए. मैंने दीक्षा से कह दिया और प्रमोद सर से भी कि मुझसे ये काम होने से रहा. सीखने की बात और होती है लेकिन बिना दिलचस्पी के उसमें दिमाग की नसों का आकार बढ़ाना मेरे बस की बात नहीं है. तो मैं समरेंद्र सर के साथ काॅपी का काम सीखने लगा और टेक्नो-दीक्षा अपना.

मुझे लगता है कि दीक्षा के बारे में लिखना बड़ा गूढ़ है. मेरा जितना क्लास का अनुभव रहा है, उस हिसाब से दीक्षा में टीम-वर्क की भावना बहुत ही उच्चस्तरीय है. सभी मुझे पाठक कहते, दीक्षा एक अकेली हैं जो आज भी पाटक कहती हैं. पाटक से याद आया. एक बार मैंने भी इनका सेकेंड नेम यानी छाबड़ा की जगह झाबड़ा बोल दिया. लेकिन दीक्षा गुस्सा नहीं हुई थी, उन्होंने मुझे सुधारा और बोलीं यार झाबड़ा नहीं छाबड़ा होता है. उसके बाद तो मैंने भूलकर भी उनका दूसरा नाम लेने की गुस्ताखी नहीं की. बस दीक्षा ही बुलाता! लेकिन वो आज भी मुझे पाटक ही बुलाती हैं. दरअसल, इसके पीछे वजह ये है कि बचपन तो गुप्ता, तिवारी, मिश्रा, राय साहेब और यादवजी के साथ बीता था. अब टाइटल ऐसे कि भोजक, चंदेल, सोढ़ी और छाबड़ा से सामना करना पड़ा तो शब्दावली की आंचलिक गलतियां हो ही जातीं.

दीक्षा, इस हद तक परोपकारी प्राणी हैं कि कोई अगर परेशानी में इनके पास चला जाए तो ये अपना काम धंधा छोड़ उसकी मदद में लग जाती. एक फीसदी भी मौकापरस्ती नहीं है इस लड़की में. अब जितना मैं जान पाया हूं, उतना ही बता पाऊंगा. बाकी, मैं तो घर का सबसे उद्दंड और स्कूल, काॅलेज का सबसे विनम्र लड़का होने का खिताब अपने दोस्तों से पा चुका हूँ. वे स्कूल के दोस्त जिन्होंने मुझे दोनों जगह देखा होगा, वे ही अच्छी तरह से मुझसे वाकिफ होंगे.

दीक्षा के लेखन की शैली इतनी संक्षिप्तात्म है कि पूछिए मत. संजय सर एक बार क्लास ले रहे थे. वे हमें भाषा पढ़ा रहे थे. भाषा मतलब शब्दों की व्युत्पत्ति और हर वर्ग का वैज्ञानिक सरोकार. जैसे- क वर्ग को पढ़ने के लिए कंठ का इस्तेमाल वगैरह. इस बीच सर ने बताया कि पीटीसी देते समय खबरों को किस तरह अंतःसंबंध स्थापित किये जा सकते हैं. क्लास में सबको संजय सर ने एक काम दिया. किसी बिषय पर पीटीसी लिखिए. 30 सेकेंड कम से कम ज्यादा से ज्यादा 45 मिनट. संजय सर चले गये तो ऐसे ही मैं दीक्षा का लेखन देखना चाहा. एक भी गैर जरूरत के शब्दों का इस्तेमाल नहीं करती हैं दीक्षा.

अलबत्ता, वर्तमान न्यूज़ एंकर्स और रिपोर्टर के लिए ये एक मिसाल के तौर पर है. जो बेवजह के शब्दों का इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं करते. जैसे – ‘ये जो पीछे तस्वीर आप देख रहे हैं उससे साफ तौर पर.. दरअसल… जो है… ” मेरे हिसाब से ये वाकथ्रू के लिए सही है कि आप बातों में घुमा लें दर्शकों को कुछ समय तक. या वाकथ्रू में भी कुछ जानकारियां उस खबर से जुड़ी पहले ही पढ़ लें तो अच्छा होता है. वैसे मैं सिर्फ आलोचना नहीं कर रहा बेवजह के शब्दों का इस्तेमाल इस कदर होता है टीवी पर जिसकी कोई सीमा नहीं. कितने एंकर्स तो आपको बता दें.. तस्वीरों से साफ है.. बोलने से अच्छा है कि ये तस्वीरें यहां कि हैं और इस बारे में ऐसी जानकारी मिली तो स्क्रिप्ट में रिपीटेशन जैसा कुछ नहीं होता.

लोग कमाल खान की पीटीसी, नविन कुमार या रविश कुमार के ब्लाॅग के इस कदर मुरीद क्यों हैं? क्योंकि वहां बेकार के शब्दों की जगह पर जरूरी शब्द ही इस्तेमाल होते हैं. ठीक दीक्षा की लिखी उस पीटीसी की तरह.

आखिर में दीक्षा के लिए बस इतना ही कि थोड़ा ही सही अपनी फ़िक्र करना शुरू कर दीजिए. मतलबी बनिए, और इस पोस्ट पर बढ़िया सा कमेंट कीजिए. इंसानियत ढोने से कुछ हासिल नहीं होता. ये संस्मरण बस इसलिए कि हम सभी फिर से चंद पलों के लिए ही सही ITMI के उन बेशकीमती दिनों में खुद को शरीक कर पाएं, जहां रहना एक स्वर्णिम दौर के तौर पर हमेशा हमारी स्मृतियों में बना रहे.

आपका शुभेच्छुक — अभिजीत ‘पाटक’

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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