((ये संस्कृत के एक स्वागत गीत की पहली लाइन है हेमंत सर. जिसका मायने होता है ‘आदरणीय’. अगर हम सभी तिमिर से लड़ने वाले उडुगन हैं तो आप ही हममें प्रकाश भरने वाले दिवाकर हैं. ईश्वर जानता है कि मैंने ताउम्र अपने सभी शिक्षकों को उससे ज्यादा अहमियत दी है. प्राचीन समय में लोगों की ऐसी मान्यता रही है कि अपने श्रेष्ठ गुरू के पैर के अंगूठे के दर्शनमात्र से विद्यार्थियों को दिव्यदृष्टि मिल जाती थी.

हमारे बनारस के संत कबीर भी मार्गदर्शक को ईश्वर से बड़ा बताते हैं. स्वामी विवेकानंद ने भी टीचर और स्टूडेंट के संबंधों को पिता से ऊपर रखा है. इसलिए मैं इस बात का दावा करता हूं कि मैं आपका शिष्य अभिजीत क्लास में बताई सभी बातों को अपनी जिंदगी में उतारने की कोशिश करता रहूंगा और भरसक प्रयास करता हूं कि मेरे लिए वे सभी उपदेश दुनिया के सभी धर्मग्रथों से भी विशिष्ट बने रहें! ये संस्मरण इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि इसको लिखते समय मैं भारी उत्साह से भर जाता हूँ. ऐसा लगता है कि एक साल का संस्मरण नहीं कोई बड़ा उपन्यास लिख रहा हूं.

हेमंत सर! आपकी कही तीन बातें मुझे आज भी सकारात्मक भाव से भर देती हैं. पहला; किसी को अपना आदर्श बनाएंगे तो आपके स्वाभाविक व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचेगा. नंबर दो – जिस दिन आपके भीतर का विद्यार्थी मर गया, आपमें सीखने की उत्सुकता समाप्त हो गई. आप कहीं के नहीं रह जाएंगे. और तीसरा, ‘आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी!”

ITMI में आपके संरक्षण में बिताया हरेक लम्हा वर्तमान में हम सभी के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रहा है और आगे भी इसकी अहमियत बरकरार रहेगी. वैसे तो फैकल्टी के सभी लोगों ने हमारे ज्ञान-संवर्धन के लिए बहुत यतन किया है लेकिन आपसे ज्यादा लगाव है हम सबका, इसके पीछे वजह ये कि आपने संभवतया सिलेबस का ज्यादातर हिस्सा हमें अकेले पढ़ाया और उससे बढ़कर आप हमें व्यक्तिगत तौर पर भी सहयोग करने के लिए हमेशा डटे रहते.))

ITMI की यादें मेरे मन की स्मृतियों से आज तक इसलिए भी नहीं बिसरी, क्योंकि वो मेरे ढ़लने और बिखरने के दिन थे. जी तो कर रहा है कि गुजरे वक्त को रोक अपने एक-एक अभाव और प्रभाव का बारीकी से विश्लेषण करूं और फिर से उनकी आधारशिला बनाऊं. थोड़ा चालाक बन जाऊं और मेरी वेदनाओं पर ठहाके लगाने वालों से पूछ सकूं कि वसंत भोग लिया ना आपने! लेकिन नहीं. ऐसा करके मैं एक बार फिर से हेमंत सर की अवज्ञा नहीं करना चाहता. जो भी अच्छा-बुरा अतीत रहा, अब बीत चुका है. बकौल सुधांशु मोहन पांडेय – खरोंच है तो निशान होगा ही, अमीर है तो अमान होगा ही! उसकी छोटी-छोटी बातों पर गौर ना कर, बच्चा है नादान होगा ही. उन सबको विस्मृत कर के बस यही याद रखना चाहता हूं कि आपके साथ बिताया हरेक पल मेरे लिए बेशकीमती है.
हेमंत सर आपसे जुड़ी कई यादें ऐसी हैं, जिन्हें सोचकर लगता है कि अभी हाल फिलहाल में ही तो हुआ ये सब. टीचर्स डे पर सर ने क्लास को एक पुराना गाना सुनाया. और उन्होंने साथ में ये भी बताया कि वे भी ITMI के पहले बैच के स्टूडेंट रहे हैं. इस बात का भी ज़िक्र वे करते रहे हैं कि किस तरह वे ITMI के स्टूडेंट से ITMI में ही मीडिया मेंटर्स बन गये.

चाहे किताबें पढ़ने की आदत हो या फिर थोड़ा बहुत लिखने की आदतें, ये सभी हेमंत सर की बदौलत ही मुमकिन हो सका. ईश्वर जानता है कि मैं उलझनों से जब बहुत परेशान होता हूं तो ITMI की उस डायरी को खोलकर पढ़ता हूं जिसमें क्लास के बीच हेमंत सर के बताए कुछ LIFE QUOTES नोट किये गये हैं. हेमंत सर ने मुझे सिर्फ जर्नलिज्म से जुड़ी किताबें नहीं पढ़ाई बल्कि बीच बीच में वे ‘लाइफ’ से जुड़ी जरुरी बातें भी पढ़ाते रहते. इससे कोई गुरेज नहीं कर सकता है कि हेमंत सर ने हमें हमेशा भारतवर्ष के एक आदर्श व्यवस्था और मूल्यों के लिए समर्पित युवा के रूप में तैयार करने की कोशिश की है.