दुनिया के तीनों दिग्गज दार्शनिक प्लूटो, अरस्तू और सुकरात भी लोगों को इतना सुझाव नहीं दिए होंगे, जितना बड़े भाई विष्णु खन्ना राह चलते को भी दे देते हैं! और जब भाईजान किसी का मार्ग प्रशस्त करते हैं तो मुमकिन ही नहीं कि उस समूह का कोई सदस्य बीच में कुछ बोल जाए. सभी विष्णु खन्ना से सम्मोहित हो जाते हैं, और प्रशांति छा जाती है. हवा-हवाई नहीं कह रहा, मैंने एक बार खुद विष्णु भाई को भोगा है. भरोसा ना हो तो सुन लीजिए!
“देख भाई पाठक! तू ना, भूल जा नौकरी-औकरी. बस ये समझ कि तू ही सब कुछ है. तू सब कर सकता है ऐसा सोचा कर! कुछ ऐसा कर दे कि कंपनी को झक मार के तुम्हें नौकरी के लिए बुलाना पड़े. और एक बात मेरी पाठक गांठ बांध लियो. बी प्रजेंटेबल.”

अब आप ही बताइए कि घर बार छोड़ के कोई इतनी दूर क्यों आया है. नौकरी करने ना. इनका बस चले तो उसे भी विधायक का चुनाव लड़वा दें जो कभी पंचायत भी ना जीत सके. खैर, हंसी मजाक की बात अपनी जगह लेकिन विष्णु खन्ना का भरसक प्रयास रहता है कि लोगों में सकारात्मक ऊर्जा की निरंतरता बनी रहे.
ITMI में कभी लगा ही नहीं कि हम कोई प्रोफेशनल कोर्स कर रहे हैं. मेरा अनुभव तो इंस्टीट्यूट में काॅलेज जैसा ही रहा. इतने अनुशासन में तो स्कूली बच्चे भी नहीं रहते होंगे जैसा हेमंत सर ने हमें रखा था. थोड़ी सी गलती पर दस मिनट की डांट. डांट की जगह सुझाव कहें तो ज्यादा ठीक होगा. जो कुछ भी हो लेकिन हेमंत सर की उन बातों से हम अनुशासन का बखूबी पालन करते. हेमंत सर जैसे मार्गदर्शक की जरूरत इसलिए भी होनी चाहिए कि आप खुद को एक जिम्मेदार युवा के तौर पर विकसित कर सकें.

विष्णु खन्ना की एक खास आदत रही कि दूसरों को उसके काम से भले भटका दें लेकिन अपने काम को पूरी तल्लीनता और सौ फीसदी ध्यान लगाकर करते. और जैसा कि मैंने पहले ही बता दिया कि एक शौकिया मोटिवेटर के तौर पर विष्णु खन्ना सबको सचेत करते रहते हैं. तो वहीं अपने सम्मोहन से लोगों को बड़ी आसानी से अपना भी बना लेते. सौ बात की एक बात की विष्णु खन्ना एक खुशनुमा और निराला व्यक्ति है.

क्लास में और इंटर्नशिप के अलावा दो चार सेशन अटेंड किया होगा मैंने विष्णु भाई के साथ. इसलिए बहुत ज्यादा वक्त गुजारने को तो साथ में नहीं मिल सका. लेकिन जितना भी रहा बेहद दमदार, यादगार और खूबसूरत लम्हा रहा वो. कई बार तो विष्णु भाई ने फैकल्टी के सामने मेरा पक्ष लिया. जिसके लिए उन्हें तहेदिल से शुक्रिया.
आलोक सर की क्लासेज कभी-कभी ज्यादा लंबी हो जाती. तो एक बार कुछ लोग पीछे से शोर करने लगे. मैंने और सर दोनों लोगों ने मना किया, लेकिन फिर भी नहीं सुन रहे. अब आलोक सर को थ्योरी पढ़ाने और समझाने में थोड़ी दिक्कत महसूस होने लगी. मैंने इसकी शिकायत हेमंत सर से कर दी. फिर क्या हेमंत सर ने ढंग से डांट लगा दिया सबको. क्लास खत्म होने पर बाहर जब विष्णु खन्ना मिले तो कह रहे हैं मुंह क्यों लटकाए हो. ठीक किया तुमने आज. ये सब आलोक सर को परेशान कर दिये थें क्लास में.
विष्णु खन्ना का व्यवहार और स्वभाव इतना खुला और साफ सुथरा है कि उसमें कोई कमी ढूंढना बेहद कठिन हो जाता है. भाई आपका मुस्कराता चेहरा और साफगोई व्यक्तित्व किसी के भी मन को जीत सकता है. जिंदगी अपने अंदाज़ में जीते रहिए और अपने शौकिया मोटिवेटर व्यक्तित्व से थोड़ा बहुत हमें भी लाभ पहुंचाते रहिएगा. धन्यवाद