(( काले खां की शेर है- हमें रोक सके, जमाने में ये दम नहीं! हमसे जमाना है, जमाने से हम नहीं. रमन को देखकर यही भाव मन में स्पंदित होता है कि ये लड़का अपने आप में एक ‘जमाना’ है. और ये जमाना इसे रोक नहीं सकता. ))
ITMI में ओरिएन्टेशन के दो दिन पहले नोएडा पहुंचा था और सुधांशु भैया के रूम से पीजी शिफ्ट होना था. यहां पीजी देखकर तो सन्न ही रह गया. एक ही रूम में तीन लोगों को रहना है, मन में आता कि इतने बड़े रूम में तो गांव में गैया भी नहीं रहती. फिर सोचा कि चलो जब नोएडा आ ही गये हैं तो संघर्ष का शुभारंभ भी कर ही देते हैं.

पहली क्लास. हेमंत सर आए अपने बारे में थोड़ा बहुत बताए और फिर हरेक से उसके बारे में पूछने लगे. सबने अपने-अपने अंदाज़ में अपना परिचय दिया. सच मानिए तो ऐसा मालूम हो रहा था कि सबकी भौगोलिक स्थितियों से पूरा उत्तर भारत नक्शाकार हो गया हो.

कोई पश्चिम बंगाल का तो कोई गुजरात. कोई मध्य प्रदेश तो कोई अपने यूपी का. हरियाणा के अंबाला कैंट से गौतम तो राजस्थान के बिकानेर से भोजक साब, हिमाचली प्राणी सुमित कुमार और दिल्ली के कुछ सुधीजन. कुल मिलाकर टीवी जर्नलिज्म की ये क्लास भौगोलिक विविधता से लबरेज थी.

क्षेत्रीय होना भी आपको उलझाता रहता है. खैर, गौतम और भोजक से रूममेट के नाते मुलाकात हो गई. लेकिन लंच में एक लड़का बार बार मुझसे जुड़ने की कोशिश करने लगा. मैंने हेमंत सर की क्लास में जैसा परिचय दिया उसी की तर्ज पर वो भी मुझसे आकर कहने लगा कि – “हम उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिले आजमगढ़ के पास के शहर इलाहाबाद से हैं, भाई-भाई हैं बे. मैंने कहा- बहुत अच्छे. उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव आया. कि उसके संवाद के प्रयास को मेरे जरिए ठुकराया जा रहा है. लेकिन ऐसा नहीं था. मैं अक्सर कम ही बोलता. ये लड़का यहीं नहीं रूका. हर शख्स से समीपता पाने की उत्कट बेचैनी लिए सबके पास जाकर मिल रहा था. उस लड़के का नाम है रमन जायसवाल.

हां, रमन जायसवाल जैसे लोगों में नेटवर्किंग और संवाद कौशल के गुण हैं. रमन की ये अच्छाई भी है कि वो बेहद व्यावहारिक है. लेकिन इसका अतिरेक मुझे नहीं भाता. इसी बात पर एक बार पीजी में मैं रमन पर गुस्सा भी हो गया था. मैंने उससे बस इतना कहा था कि रमन कोई बात हो मुझसे जुड़ी तो उसे सीधे मुझे बताया करो. तीसरे के मुंह से तुमसे बताई बातें सुनना नहीं पसंद. लेकिन इस पर उसकी प्रतिक्रिया इतनी मासूम की किसी का भी गुस्सा झटपट शांत हो जाए. “कह रहा हूं तू भाई है अपना पाठक. हंसते हुए, जानते हो ना आजमगढ़ की सीमा से सटा है इलाहाबाद. ना चाहते हुए भी मेरे चेहरे पर मुस्कराहट फूट ही पड़ी.

रमन को अब भी ऐसा लग रहा था कि मैं उससे खफा हूं. उसने कहा कि “आजा थोड़ा टहल के आते हैं बाहर से. रमन के हरेक बातों में अपनी मम्मी और पापा का जिक्र सुनने से लगता कि वो उन्हें बहुत चाहता है. पूरे रास्ते पापा मेरे लिए ऐसा किये, मम्मी की ये तस्वीर उस समय की है वगैरह. मैंने कहा- बिल्कुल रमन. मां-बाप का रिश्ता बहुत प्रगाढ़ होता. अपना ये प्यार उनके लिए तब भी बनाकर रखना जब भौजाई आ जाए! रमन और मैं इस पर जोर से ठहाके देकर हंसते हैं.

वैसे रमन की कुछ हरकतें बर्दाश्त करने लायक नहीं है. लेकिन उसका भोला मन इतना मासूम है कि सुलह के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता. आखिर में बस इतना कि तुम्हारे नाम का मतलब रहना होता है, और तुम हमेशा इसी तरह रहना, शुभेच्छाएं और प्यार!