सोचा था इस बार सैलरी बढ़ेगी तो पापा के लिए कार लूंगा फिर धीरे-धीरे किश्त चुकाता रहूंगा लेकिन सारे अरदास धरे के धरे ही रह गये. पापा ने जीवन भर हमारे लिए और घर के लिए किया, कभी अपने बारे में सोचते ही नहीं हैं. पापा को रिटायर हुए भी चार साल हो गये. लेकिन आज भी घर बार के चक्कर में उलझे हुए हैं. कहीं जाना होता है तो धूप सहते हैं.
पापा ने जिन लोगों के लिए अपनी गाढ़ी कमाई लगा दी आज वे ही उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी बन कर सामने खड़े हैं. ऐसे लोग ही मुझे कई दफा नैतिकता का पाठ भी पढ़ाते रहते हैं. खैर, कुछ भी करने के लिए नीयत साफ होना चाहिए. दिन तो हमने ऐसे-ऐसे देखे हैं जिसके सामने आज का ये संघर्ष बड़ा अदना नज़र आता है. इतिहास साक्षी है कि जिन लोगों ने भी ईमानदार प्रयास का विरोध किया, उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा. वैसे इस साल नहीं सही, अगले साल. लेकिन ये जरूरी और सहज अरमान भगवानजी जरूर पूरी कर देना! 😊🧡