बरेली, भगवान शिव के ऐतिहासिक मंदिरों से घिरा हुआ शहर है. नाथ संप्रदाय के क्रियान्वयन में महती भूमिका निभाने वाले इस शहर को नाथ नगरी भी कहते हैं. रामगंगा नदी अनवरत इस नाथ नगरी के पांव पखारने की भरपूर कोशिशों में लगी रहती है. आला हजरत का मशहूर दरगाह और नवजागरणकाल के प्रसिद्ध समाज सुधारक ज्योतिबा फुले के नाम से बनी यूनिवर्सिटी इस शहर की विशेषताओं के अंग हैं. इसी मशहूर शहर में वेब जर्नलिस्ट और मेरे एक दोस्त तरूण अग्रवाल का पैतृक निवास है. तरुण के साथ बिताए बहुत सारे खास लम्हें हैं, लेकिन इनमें से चंद यादों का अनुकूल बिंब रचते हैं.

मैंने ITMI में सबका नंबर फोन में फर्स्ट नेम और फिर ITMI लिखकर सेव किया था, ऐसा इसलिए भी कि जाति ना पूछो साधु की पूछ लीजिए काम. तो लाजमी तरुण का भी नंबर TARUN ITMI नाम से ही सेव किया. शुरूआत में तरूण को क्राइम जर्नलिज्म में खास दिलचस्पी हो गई या कोई खास वजह नहीं पता लेकिन एक दिन उसने मेरा फोन लिया और झटपट अपना नाम मेरे सेलफोन में क्राइम जर्नलिस्ट तरूण के नाम से सेव कर दिया.

क्राइम जर्नलिज्म के पीछे का फितूर ये था कि बंदा शम्स सर के क्लासेज़ से ज्यादा प्रभावित हो गया, ऐसा मुझे लगता था. तरूण को वेब जर्नलिस्ट की संज्ञा इसलिए भी दे दिया क्योंकि तरूण, मयंक, भोजक और विशाल शर्मा समेत हम लोगों ने न्यूज़बाजार नाम से एक वेबसाइट बनाई और काफी हद तक उसे चलाने में सफल भी रहे. इसमें सबसे ज्यादा कोशिशें तरूण अग्रवाल की ही रहीं.

यूपी में शिक्षामित्रों की नियुक्ति में धांधली और समस्याओं पर काफी रिसर्च कर तरुण महाराज इसी केस के वकील का इंटरव्यू करने पहुंचे. मैं और मयंक भी साथ थे. वकील बोलते गये, बोलते गये… तरूण बीच में हामी भरते चले जा रहे हैं. जब वकील साहेब अपनी बात पूरी कर लिये. तो तरूण की वो लाइन आज भी हास्य के उद्दीपन बिखेर देती है.. गजब.. सर गजब! बमुश्किल वकील साहब के रूम तक तो हम दोनों किसी तरह अपनी हंसी रोक पाए लेकिन बाहर आकर ठहाकों की गूंज ऐसी पसरी कि पेट दर्द करने लगा.

आखिर में तरुण के बारे में बस इतना ही कि वो एक नेक व्यक्तित्व और रोमांचक आदमी है. उसके साथ घूमना हमेशा मजेदार रहता. खान मार्केट, जामा मस्जिद और बहुतेरी जगहें जहां हमारा दोस्ताना अभी भी जीवंत है. इसी तरह जीवन में नये मुकाम हासिल करते रहो, खूब शुभेच्छाएं..
