((विशाल भाई से आपकी असहमतियां हो सकती हैं, लेकिन किसी भी मनमुटाव को रखने के लिए उनके विशाल ह्रदय में कोई जगह नहीं होती. वो फ़िक्र के मुंडेर पर बैठे ऐसे सारथि हैं, जिन्हें अपने साथ के लोग अर्जुन जैसे लगते हैं.))
मैंने ऐसे बहुत कम लोग देखे हैं, जिन्हें बरबस ही अपने साथ रहने वालों का फ़िक्र हो. विशाल शर्मा मेरे ITMI के दौर के एक ऐसे मित्र हैं, जिनका नाम लेते समय मन में आदर जैसा भाव भर जाता है. क्योंकि वो हर संभावनाओं को उड़ने के लिए प्रेरणा देते और हम लोगों के दायित्वों को किसी ऐतिहासिक शख्सियत का नाम लेकर जिम्मेदारियों का दायरा और अधिक बढ़ा देते.

विशाल भाई से हुई एक मीटिंग की बातें साझा कर रहा हूँ- अभिजीत, बिना सिद्धांत और मूल्यों के चलते जाना आपको बड़ा बना सकता है, ऊंचा कभी भी नहीं. कोई बार-बार अपने सिद्धांतों से समझौता करके जिंदा तो रह सकता है, लेकिन अपना व्यक्तित्व नहीं बचा सकता. इसलिए जब भी कुछ करना अपने सिद्धांतों और मूल्यों को बचाए रखना. थोड़ा मुश्किल है लेकिन मुझे लगता है कि तुम जैसे चंद लोग मुझे कभी नाउम्मीद नहीं करोगे.
विशाल भैया हजारीबाग, झारखंड के हैं, तो उनका हालचाल पूछने का वो लहजा मुझे बहुत ही पसंद आता. मुस्कराहट के साथ ‘और अभिजीत कैसा है, तू आजकल दिखाई नहीं दे रहा. कहां रहता है भाई’. फिर तो मन कितना भी गमगीन हो. खुशी से लबरेज हो जाता.

हम लोगों को इंस्टीट्यूट से दशहरा पर एक एवी तैयार करने का असाइनमेंट मिला था. विशाल भैया नेहरू प्लेस के पास जिस मैदान में रावणदहन देखने जाने का प्लान बनाए थे. वहां रावण को समय से पहले ही जला दिया गया. फिर लोगों से पूछने पर पता चला कि पास ही में एक और रावण जलाया जाना है. चलकर किसी तरह हम वहां पहुंचे थे. ऐसा लग रहा था मानो रावणदहन कवर नहीं कर रहे हैं, एवरेस्ट फतह कर लिया है.
खान अब्दुल गफ्फार खान के भाई जब्बार खान के नाम पर बना दिल्ली का मशहूर खान मार्केट, जाने का प्लान तरूण ने किया और साथ में विशाल भैया भी थे. इतना मजेदार अनुभव रहा कि पूछिए मत. खान मार्केट 1951 में बना था और यहां 154 शाॅप हैं. यू शेप में बने इस मार्केट की खासियत आप तभी जान पाएंगे, जब यहां घूमने के दौरान इसके बारे में रोचक जानकारियां देने वाला विशाल भाई की तरह कोई साथ में हो.

आखिर में बस इतना ही कि विशाल भैया के साथ बिताया हर लम्हा खास बन जाता है. ईश्वर से आपकी कुशलता और उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ.