((आधुनिक दौर के छात्र लंबे पाठ्यक्रम और परंपरागत टीचिंग स्टाइल से बोर हो जाते हैं, इस पीढ़ी के मेंटर ऐसे होने चाहिए जो दोस्त सरीके हों और आपको क्लास के बाहर भी ये एहसास ना होने दें कि वो आपके दोस्तों से अलग हैं. ऐसे मानकों में फिट बैठने वाले मेरे एक ही टीचर हैं, और उनका नाम प्रशांत कोठारी है.))
हम लोगों को ITMI में डिजिटल जर्नलिज्म समझाने के लिए प्रशांत सर को जिम्मेदारी दी गई. हमने कायदे से डिजिटल जर्नलिज्म तो सीखा ही साथ में एक ऐसी क्लास भी नसीब हुई, जिसमें टीचर दोस्त के किरदार में रहते. उनकी आर्ट आॅफ टीचिंग का मैं मुरीद हूं. प्रशांत सर का पढ़ाने का वो तरीका और बीच-बीच में बेवजह सबके चेहरों को मुस्कराहट की सौगात देने की कला वाकई में सबसे जुदा है.

मानव, व्यवहार से तीन तरह की क्रियाओं को अपनी स्मृतियों में देर तक रोकता है. ये तीनों हैं – मानिया, फिलिया और फ़ोबिया हैं. और इन तीनों का अनुभव हमने प्रशांत सर की क्लास में भरपूर किया. मानिया यानी लगाव बनाने की तरकीबें. जैसे अगर हम हिस्ट्री की क्लास में होते हैं तो हमें इंसान होने के नाते अपने मुल्क के अतीत को जानने में दिलचस्पी होती है और हम उसके लिए मानिया इंसानी गुणधर्म में तरबतर हो सकते थे. लेकिन सर की क्लास में जर्नलिज्म या किसी भी तरह की हिस्ट्री या कहानी नहीं थी. तो प्रशांत सर विषय को रोचक बनाने के लिए उसे किसी कहानी में तोड़ देते. या समझाने की कोशिश में मानिया का घोल डाल देते. दूसरा फिलिया यानी इश्क़. एक बार मास कम्यूनिकेशन वालों के ज्यादा क्लासेज की वजह से और साथ ही बचे सिलेबस को पूरा कराने के लिए गेस्ट फैकल्टी के टीचर आए और इसके एवज में हमें करीब तीन हफ्ते तक सर की क्लास के अभाव में रहना पड़ा. बहुत दिन बाद जब सर की क्लास लगी, तो हम सर की क्लास के लिए काफी उत्सुक थे. तीसरा फोबिया यानी डर. सर डराते भी थे. अब आप पूछेंगे कि मगर वो कैसे? तो जवाब ये है कि सर कभी भी अचानक टेस्ट ले लेते और सारे आग्रहों का गला घोंट देते.

ये बात तो हुई शिक्षण कला की. मैं जितना समझ सका उस हिसाब से प्रशांत सर के तमाम क्लास हमें डिजिटल जर्नलिज्म से ज्यादा नामुमकिन चट्टानों पर हथौड़ा मारने के गुर सिखाते रहे. जी हां, वो एक कुशल मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं. एक दिलचस्प वाकया सुनाता हूं, जो मेरे जीवन का सबसे उत्प्रेरक मोड़ तैयार करता है. प्रशांत सर ने सबको एक टाॅपिक पर कंटेंट बनाने और उसे डिजिटल माध्यमों पर प्रमोट करने का असाइनमेंट दिया था. मुझे कोई विषय समय नहीं आया. जब भी ऐसा होता है कि मुझे कुछ सूझता नहीं तो मेरे पास सिर्फ तीन जवाब सूझते हैं. कलाम, गांधी और विवेकानंद. इस बार मैंने कलाम के जरिए अपने कंटेंट को ढूंढने की कोशिश की थी. मुझे लगा कि घोर सैद्धान्तिक हो रहा हूँ कहीं खाली हाथ ना लौटना पड़े. लेकिन मेरे हाथ एक प्रासंगिक विषयवस्तु लग ही गई. विषय था- ENERGY CONSERVATION IN REFERENCE OF 21ST CENTURY.

अपने एक स्पीच में कलाम ने कहा था कि 2020 में हम दुनिया के विकसित देशों के जितना ऊर्जा उत्पादन करेंगे. जिसका नाम उन्होंने मिशन इक्विटी 2020 रखा. मुझे लगा कि कलाम का इतना सम्मान करने वाला देश उनके मरने के बाद कम से कम उनके सपनों को अपनी आंखों में जरूर रखेगा. पीयूष गोयल उस साल ऊर्जा मंत्री थे. उन्होंने दो साल में मिशन इक्विटी के लिए कुछ भी नहीं किया था. मीडिया के लोग भी कलाम के सपनों को भूल चुके थे. ये बातें मैंने प्रशांत सर को बताई. प्रशांत सर ने सुनने के बाद साफ और स्पष्ट जवाब दिया था ‘पकड़ो पीयूष गोयल को’. मुझे पहली बार ऐसा लगा कि अपने मजबूत कंटेंट के ज़रिए आप किसी को भी घेर सकते हैं. आजकल यही नहीं हो पा रहा. या यूं कहिए कि बहुत कम ऐसा कुछ हो पा रहा है. जिस दौर में प्रधानमंत्री का भाषण ही हेडलाइन बनता हो. उस समय अतीत के ये उत्प्रेरक अनुभव बौद्धिक ओज से भर देते हैं.

आखिर में बस इतना ही कि ऐसे प्रशिक्षक और क्रियान्वेषी मार्गदर्शक ही नये युग की शुरूआत की नींव खड़ा कर सकते हैं. मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे आपका सान्निध्य मिला, उम्मीद रहेगी कि हमें अनवरत ऐसे ही विचारदीर्घा से अभिभूत करते रहे. चरण स्पर्श!