आग और पानी से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए!

बचपन में दादी कहा करती थीं कि बेटा आग और पानी से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए! तो लगता कि ये बहुत साधारण बात है. अगर हमें तैराकी आ जाए तो पानी से क्यों डरना? लेकिन आग वाली बात को लेकर उनकी निश्चितता हावी लगती. स्कूल में जब आग की खोज पढ़ा तो लगा कि आग से तो भोजन बनता है और अगर ठंडियों में अलाव ना जलते तो लोग ठिठुरन से निजात कैसे पा सकते हैं. आग तो उपयोगी हुआ फिर! लेकिन दादी की आशंकाओं को खारिज नहीं कर पाया.

मन में ये शब्द किसी शोधपत्रांक की तरह चिपक गये. आठवीं में सौर ऊर्जा की बात हुई. पता चला कि नाभिकिय संलयन की वजह से लाखों साल से ये पिंड ब्रह्मांड के लिए उष्मा और ऊर्जा का मुख्य स्रोत बना हुआ है. फिर आग से डरने की जरूरत क्यों है? मन अब भी नहीं मानने के लिए तैयार हो रहा था कि दादी की बातों को खारिज किया जाए! वो दिन आया जब दादी की उन बातों की दमक बढ़ गई.

हमारे मनीषियों ने भी दादी की बातों को वेद में संकलित किया है. हम विश्वशांति की अगुवाई लाखों साल से कर रहे हैं. मुझे आग से दादी की वाजिब आशंका का भान तब हुआ जब मुझे सोशल साइंस की क्लास में परमाणु हथियार के इस्तेमाल और हिरोशिमा, नागाशाकी पर क्रूर हमले के बारे में पढ़ाया गया.

हमारे पुरखे हमें आगाह करते हैं, ठीक उसी तरह जैसे मौलिक किताबें. जंगलों में जो आग लगती है, उसे दावानल कहते हैं. दुनिया के घने जंगलों में आग लगने की घटनाएं आम हैं. आतंकियों के बम हो या रक्षा में चले सैनिकों के हथियार. दोनों आग के ही उपमान हैं. हमने विश्वशांति के लिए क्या किया? ये बड़ा सवाल है.

अशांति और असुरक्षा की संभावनाओं को इसी ‘आग’ या विस्फोटकों ने जन्म दिया है. तब नासमझी में मैं दादी के संकेतों को समझ ना सका, लेकिन अब समझ आया है कि बाढ़ की विभीषिका भी पानी से खतरे की ही तरह है. और पानी के लिए भी(समुद्री सीमाओं) दुनिया में तनाव हैं. इसलिए आग और पानी को विश्वशांति के मार्ग से हटाने के लिए दुनिया को पुरजोर कोशिश करने की जरूरत है!

Published by Abhijit Pathak

I am Abhijit Pathak, My hometown is Azamgarh(U.P.). In 2010 ,I join a N.G.O (ASTITVA).

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