मैं भी सोच रहा हूँ कि साला सुशांत की तरह सुसाइड कर लूं. लोगों की नजरों में कम से कम अच्छा तो बन जाऊंगा. अगर सुसाइड करने से आपकी अच्छाई की परख लोगों को हो रही हो, तो इससे नायाब रास्ता तो और कोई हो ही नहीं सकता. चलिए इसे एक मिशन के तहत अपना लेते हैं और सुशांत को आदर्श बनाने की होड़ हर जगह चरम पर है ही. तो उसका रास्ता अख्तियार करने में संकोच क्यों?
मामले में अभी ये साबित नहीं हो सका है कि रिया ही कसूरवार हैं लेकिन फिर भी चलिए उन्हें कसूरवार मान लेते हैं, तो सुनने में ये भी आ रहा है कि सुशांत के साथ रिया भी ड्रग लेती थी. इंटरव्यू में उसने भी कहा कि उसकी एंग्ज़ाइटी की दवा चल रही है. फिर रिया ने सुसाइड क्यों नहीं किया और सुशांत ने क्यों कर लिया? आखिर कैसे कोई किसी को ड्रगी बना सकता है, जब तक कोई खुद ड्रगी ना बनना चाहे.
क्या नहीं था सुशांत के पास. परिवार, बहनें और सबसे बड़ा तो उनके इतने सारे चाहने वाले. पैसों की इतनी क़िल्लत तो नहीं ही रही होगी, जितनी हमें होती है. तो हार मानकर ऐसा कदम उठा लें. और अपने किये का ठीकरा किसी के भी सिर मढ़ दें.
नशाखोरों को मैं कभी भी एक अदद आशिक़ नहीं मानता. वो मुकम्मल इश्क़ के रास्ते के कलंक हैं. आप इस बात को गांठ बांध लीजिए कि प्यार और नशाखोरी का दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है. आमतौर पर प्यार का मारा सिगरेट या दारू का सहारा लेता है. माने उसके प्यार में इतना दमखम नहीं बचा होता है कि वो अपने प्यार के नशे में जुदाई, विरह या गम के दिन काट सके.
(बदलाव की उम्मीद के साथ)