हमारे गांव में एक राय साहब थे, वो दो लोगों में विवाद की खबर पाते ही पहुंच जाते थे, विवाद सुलझाने. उनको कोई बुलाए या नहीं. और आखिर में पता ये चलता था कि विवाद में किसी एक पक्ष के साथ लाठी लेकर खुद भिड़ जाते. विवाद ना सुलझ पाने की स्थिति में लोग दौड़कर हमारे दादाजी के पास आते. तो पता चलता कि राय साहब किसी एक पक्ष की वकालत करने लगे थे.
अमेरिका की भी हालत राय साहब जैसी ही है. उसे पता चलता है कि किन्हीं दो देशों में तनाव बढ़ गया है तो मध्यस्थता करने जरूर पहुंच जाता है. एक बार तो भारत ने जमकर सुना भी दिया था कि भाई! पीओके हमारा आपसी मामला है, हम निपट लेंगे. उसमें अमेरिका टांग ना अड़ाए.
मानते तो राय साहब भी नहीं थे, एक विवाद में किसी को गाली-गलौज देकर समझाने लगे तो दोनों पक्ष एक होकर राय साहब को ही पीट दिये. फिर क्या था, राय साहब की आदत भी छूट गई और गांव में लोग आपसी विवाद खुद सुलझाने लगे. अमेरिका को राय साहब वाली कहानी से सीख लेने की जरूरत है. नहीं तो अंजाम कुछ भी हो सकता है.
(बदलाव की उम्मीद के साथ)