जब आप सुशांत सिंह राजपूत मामले में ऐसी अवधारणा बना के चल रहे हैं कि उनका इस्तेमाल हुआ तो आप कहीं ना कहीं उनके इंजीनियर दिमाग पर कमजोरी का धब्बा लगा रहे हैं. क्योंकि इस्तेमाल कोई उसी का कर सकता है, जिसमें इस्तेमाल या शोषण करने वाला शोषित होने वाले से तेज दिमाग का हो. आप कह रहे हैं रिया ने सुशांत को अपने काबू में कर लिया? नहीं ये भी बातें अब सामने आने लगी हैं कि सुशांत खुद ड्रग का सेवन करते थें.
क्या आपके सुशांत ने ड्रग का सेवन करने से पहले ये पूछा था कि उनके चाहने वाले लोगों को जब पता चलेगा कि वो चरसी हैं तो लोगों को कैसा लगेगा. लेकिन अगर आज जब ये बात खुलकर सामने आ रही हैं तो ये समझने की कोशिश कीजिए कि उसने ड्रग लेते समय आपकी फिक्र और भरोसे को ठेंगे पर रख दिया. अब ये बात भी विवेचना के लायक है कि क्या ड्रग लेने के लिए उन्हें बाध्य किया गया? तो फिर रिया को ड्रग लेने के लिए किसने बाध्य किया!
दरअसल, होता क्या है कि जो लोग ड्रग या किसी भी नशे का सेवन नहीं करते, उनके लिए तो ये अनैतिक है. लेकिन जो इन नशों के आदी हैं, उनका ये शौक है. शौक जिंदगी बनाने और बिगाड़ने, दोनों तरह का हो सकता है. मनोदशाएं सबकी थोड़ी-बहुत खराब हो सकती हैं, इसका ये कतई मतलब नहीं बनता कि आप अपने परवरिश में मिले निर्देशों को भूल बैठे.
अच्छा मुझे समझाइए कि क्या भगतसिंह के देशप्रेम के नशे से ज्यादा नशीला हो सकता है कोई भी ड्रग, शराब या जो कुछ भी लोग इस्तेमाल कर रहे हैं. कितना भी बड़ा पियक्कड़ या नशाखोर क्यों ना हो! उसके गले में फांसी का फंदा डाल दीजिए और फिर कहिए कि इंकलाब जिंदाबाद बोल के दिखा दे. उसका सारा नशा उतर जाएगा. वो अपनी जिंदगी की भीख मांगने लगेगा. तो नशा करना हो तो भगतसिंह की तरह देशप्रेम का नशा कीजिए, और उन जैसे युवाओं से प्रेरणा लीजिए. क्योंकि सुशांत सिंह राजपूत के जीवन में अगर एक भी सिद्धांत जिंदा बचा रह गया होता तो वे ड्रग कभी नहीं लेते. ड्रग पार्टियां आयोजित नहीं करवाते.