अगर किताबें पढ़ने की आदत एक बार बन गई तो आप इसके बिना रह ही नहीं पाओगे. बड़ी अजीब सी लत है ये भी. हर हफ्ते नई किताबें. हर समय एक नया विषयवस्तु जानने समझने की होड़. मानसिक फिटनेस के लिए भी अध्ययन और मनन बेहद जरूरी है. जो लोग पढ़ने के शौकीन हो गये हैं, वे कभी निराशावादी नहीं हो सकते. संघर्षों के सामने हताश नहीं हो सकते. ऐसे लोगों के पास चिंतन की प्रावस्थाएं होती हैं, जिनके जरिए वे किसी भी परिस्थिति और प्रतिकूलता में भी डटे रहते हैं.
बिहार में एनडीए की फिर से जीत पर नीतीश सरकार को कैसे बधाई दी जाए? जो सरकार एक महामारी में लोगों को निशुल्क इलाज और समुचित व्यवस्थाएं नहीं दे पाई. उसके लिए देश के प्रधानमंत्री तक को पूरा जोर झोंकना पड़ा. महामारी के काम धाम ताक पर रख भारत सरकार बिहार कूच कर गई. अभी तो वैक्सीन आई नहीं, पर वैक्सीन आने के बाद जनता के साथ फिर से धोखाधड़ी करने की नौबत तो अब नहीं आनी चाहिए.
अमेरिका में ट्रंप की हार की मूल वजहें ब्लैक लाइव्स मूवमेंट और कोरोना महामारी में लापरवाही करना ही रहा. अमेरिका के लोगों ने ट्रंप से भरोसा करना छोड़ दिया, लेकिन बिहार के लोगों की राजनीतिक आस्था बरकरार रही. बहरहाल, तेजस्वी यादव के प्रदर्शन पर कोई सवाल नहीं खड़ा कर सकता. मसलन, कांग्रेस अगर थोड़ा और मेहनत की होती तो सत्तापलट मुमकिन हो पाता. बिहार में 19 लाख रोजगार के अवसर पैदा करना भी एनडीए के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण काम है. नीतीश कुमार तो चुनावी रैलियों में ही इस पर सफाई दे चुके हैं कि कहां से दस लाख सरकारी नौकरियां आएंगी और बिना समंदर उद्योग कैसे लगेगा.
प्लूरल्स पार्टी की संस्थापक पुष्पम प्रिया भले ही चुनाव में हार गई लेकिन वो जबसे चुनाव प्रचार में उतरी थीं, लगातार बिहार में बंद हो चुके लघु और मध्यम उद्योगों की बदहाली की तस्वीरें अपने सोशल मीडिया के जरिए प्रकाशित करती रहीं. बिहार में बाढ़ की विभीषिका में पप्पू यादव का दिखावे के लिए ही सही, लेकिन जो वीडियो में लोगों की मदद करते देखा गया, वो अविस्मरणीय है.
चिराग पासवान भी अपने विजन के दम पर कुछ करने की चाहत रखने की कोशिश में थें, लेकिन उन्हें तो रामविलासजी के निधन के तौर पर भी जन सहानुभूति नहीं मिल पाई. एग्जिट पोल के नतीजे भले गलत साबित हुए हो, पर बिहार वेलफेयर के लिए सत्ता का स्थायी बन जाना आगे चलकर बहुत नुकसानदेह साबित होगा.