किसी का सबसे सटीक और प्राथमिक परिचय क्या हो सकता है? जहां वो पैदा हुआ, उसका नाम कुल वंश या जाति या उसका पेशा! जहां वो पैदा हुआ; उस जगह से बहुतेरे लोगों की पहचान जुड़ी हुई होगी. नाम के लोग भी तो मिल ही जाते हैं. वंश जाति भी नहीं; यहां तक की धर्म भी नहीं. किसी भी व्यक्ति की एक विशेष पहचान क्या है? ये बड़ा ही गूढ़ है. कुछ लोग कहेंगे स्वभाव और अनेकरूपता मगर स्वभाव की दृष्टि से भी तो व्यक्ति कुछ दस बारह तरह के हो सकते हैं. फिर किसी की सबसे सटीक पहचान क्या हो सकती है. हम अमूमन; अपना परिचय इसी तरह से देने के पाबंद हो गये. या फिर परिचय के सीमित मापदंड इन्हीं पर आधारित कर दिये गये. हम सभी मानव जाति से हैं. ये तो सबकी पहचान हो गई. इस गाँव या कस्बे के हैं ये भी सामूहिक पहचान ही हुई. क्योंकि गाँव तो आपके साथ औरों का भी है. फिर माता-पिता; वो तो जैविक पहचान हुई. फिर आपकी पहचान का क्या? पेशा भी तो एक जैसा कितने सारे लोगों का होता ही है. फिर किसी की सबसे सतही पहचान क्या हो सकती है? सोचिए जरा… अगर किसी अंजान द्वीप पर जो अज्ञात हो. आपको छोड़ दिया जाये. और वहां का एक व्यक्ति भी आपके भौगोलिक स्थितियों से अंजान हो. आप उसे अपने बारे में क्या बताएंगे. अपना नाम? हो सकता है कि अगला आपकी भाषा भी नहीं समझता हो. आप अपने परिचय की मौलिकता में गोते लगा लीजिए, मगर आजतक जिन परिचय के सहारे आप अकड़ते रहे हैं!
आपको आभास हो चुका होगा कि वो आपका यूनिक परिचय नहीं है. फिर कोई अपनी पहचान कैसे करे? क्या बताए कि कोई अपरिचित भी आपको उस आइडेंटिटी से पहचान सके. जहां आपको सभी जानते हैं; वहां आपका नाम और गांव ही आपके पहचान के लिए पर्याप्त है. आपका पोस्टल एड्रेस आपकी पहचान है. तो वही पता तो आपके भाई की भी होगी. फिर यूनिक आइडेंटिटी का दम कोई कैसे भर सकता है. आप सभी को क्या लगता है पहचान का कोई सिरा होता भी है क्या? कुछ जेहन में आए तो मुझे भी बताइए!