मुझे नहीं मालूम कि माया का फंदा किसको फांस रहा है और कौन इसकी चपेट से बाहर है; लेकिन अपने जीवन और इससे मिले अनुभवों से इतना जरूर जान गया हूं कि विषय-विकार सब पर हावी है. किसी चीज़ की कामना ही विषय विकार है; और सोचिए कौन यहाँ उससे बच सका है? किसी की कामना संपत्तियों के लिए है तो कोई नाम और शोहरत के लिए बेचैन है. किसी को अच्छा जीवनसाथी चाहिए तो कोई सर्वेसर्वा बनने की होड़ में लगा है.
गीता में लिखा है कि लोग इसी माया के फांस से बाहर नहीं निकल पाते. और खुद को साधारण घोषित कर देते हैं. ये मेरा भोगा हुआ अनुभव है. विशेष व्यक्ति सिर्फ किसी पद प्रतिष्ठा पाने के बाद घोषित नहीं किया जाना चाहिए और ना ही किसी अनुभव के आधार पर. कोई विशेष या महान तब माना जाये जब उसके पास विषय विकार से दूर रह सकने की कुशलता मिल जाये. महान या विशेष व्यक्तित्व वही बनाया जाए जो काम, क्रोध, मद, लोभ के प्रभाव में ना आता हो.
जिसके जीवन में सिद्धांत और मूल्यों के लिए भरपूर जगह हो. और इन्हीं रास्तों पर चलने वाले लोगों का अनुकरण किया जाए. मुझे पूरा भरोसा है कि जिस रोज लोग संतोष, सब्र और धैर्य के हथियार से कामनाओं का वध करने वाले बन जाएंगे; उस दिन कहीं अपराध नहीं होगा. किसी राज्य में कोई भूखा नहीं सोयेगा. सभी सुखी; संपन्न और समृद्ध बन जाएंगे. जिस रामराज्य की हम हजारों साल से परिकल्पना कर रहे हैं; वो हमारी आंखों के सामने वास्तविकता की परिधि कर लेगा.
शुभरात्रि!