जो लोग दुनिया की जानकारियों की समझ विकसित कर लेते हैं; उन्हें एक समय बाद राष्ट्रीय समस्याओं में उतनी दिलचस्पी नहीं रह जाती. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मामलों की समझ होने के बाद देश के मुद्दे गौण लगने लगते हैं. या यूँ कहे कि राष्ट्रीय मुद्दों से आपका सरोकार और दिलचस्पी धीरे-धीरे घटने लगती है. आज एक बहुत ही दिलचस्प खबर आई ट्यूनीशिया से. जहाँ पर एक डाॅक्टर अस्पताल में मरीजों को हिम्मत और हौसला बनाये रखने के लिए वायलिन बजाकर सुनाते हैं. वायलिन की धुन सुनने के बाद कैंसर और कोरोना के दोहरी मार को झेल रहे मरीज खिलखिला उठते हैं. ऐसा लगता है मानो उन मरीजों को; जो जिंदगी से नाउम्मीद हो चुके हैं, दवा से भी जरूरी वायलिन की धुन की जरूरत है. दुनिया को ऐसा ही होना चाहिए. दूसरों के काम ना आ सकें तो फिर इंसान होने का फायदा ही क्या है?
चुनाव में हार के बाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति पहली बार किसी कार्यक्रम में शिरकत करने जा रहे हैं, लेकिन ये अमेरिका के लोकतंत्र की ही शक्ति है कि उनके भड़काऊ बयानों के लिए उनके अपने लोग भी उनसे खफा होकर बैठे हैं. ईरान भी कमाल का देश है! अमेरिका से परमाणु समझौते को लेकर असहमति को आज यूएन के न्यूक्लियर चीफ पर निकाल दिया. मानिटरिंग की मकसद से लगाए उनके सर्विलांस कैमरे को दो बार बंद किया गया. इससे साफ जाहिर है कि ईरान के राजनेताओं की अमेरिका से किस हद तक ठनी है. अमेरिका को बार बार धमकियाँ देने वाले टर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन के रुख में भी नरमी देखने को मिली, अब वे भी अमेरिका के साथ मिलकर आगे बढ़ने की मंशा दिखा रहे हैं.
अमेरिका में बंदूक को ट्रंप प्रशासन ने खिलौना बनाकर रख दिया था. जब से बाइडेन राष्ट्रपति बने हैं; बेतहाशा बंदूकें खरीदने पर सख्ती दिखा रहे हैं. जिसके चलते आज न्यू आर्लियंस के एक गन स्टोर में ही हमला हो गया. क्रॅस फायरिंग में हमलावर तो मारा गया लेकिन दो लोगों की जान नहीं बचाई जा सकी. वहीं; 2017 से गृहयुद्ध झेल रहे अफ्रीकी देश नाइजर में आज राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान हुआ. अमीर देश सर्बिया के पास आज चार तरह की वैक्सीनें उपलब्ध हैं. स्पुतनिक, सायनोफार्म और फाइजर की तो पहले ही मंगवा चुके थे; आज वहाँ के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर वुसिक खुद एयरपोर्ट पहुँच एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का जायजा लेने पहुंचे थे.
आज आस्ट्रेलियन ओपन में नोवाक जोकोविच 9 वीं बार चैंपियन बनकर मेन्स सिंगल्स का खिताब अपने नाम किया.
मुझे लगता है कि भारत के युवाओं की संकीर्ण सोच को विकसित करने और बेकार के घरेलू मुद्दों में उलझनें से बेहतर है कि वे विश्व नागरिक बने और दुनिया को जानने की कोशिश करें. मेरा दावा है कि अध्ययन और अनुभव दोनों मजेदार होगा!