2014 के बाद भारतीय राजनीति आस्था का विषय बना दी गई है. अनहद भक्तियुग! कोई प्रधानमंत्री के झूठे दावे के खिलाफ नहीं बोलेगा? नहीं तो उसे गालियाँ दी जाने लगेंगी. उनके अतार्किक और अज्ञानी बातों पर सवाल उठा दे तो उनके समर्थक जान से मारने की धमकियाँ देंगे! एनडीए सरकार की विफलताओं पर बोलने पर लोग उसे सोशल मीडिया पर ट्रोल करेंगे और तमाम तरह से परेशान करना शुरू कर देंगे. देश गर्त में जा रहा है लेकिन कोई आवाज़ ना उठाये. ये लोकतंत्र है और बतौर भारतीय नागरिक हम अपनी सरकार से सवाल पूछने के लिए प्रतिबद्ध हैं और पूछेंगे भी!
युवाओं को देश की समस्याएं जाननी होंगी और उसके समाधान की तरफ़ कोई कदम उठाना होगा. हमें एक प्रधानमंत्री के भरोसे नहीं बैठना चाहिए और ऐसे प्रधानमंत्री के भरोसे जो ज्वलंत विषयों पर गंभीरता नहीं दिखाता बल्कि बहुसंख्यक आबादी को अपने खेमे में मिलाने के लिए तमाम संप्रदायों में बिखरी भारतीय अस्मिता को कपड़े से पहचानने की बात करते हैं. 35 साल तक भिक्षा मांगकर जीवन यापन करने की बात करेंगे. एक युवा भिक्षा मांगे; ये उचित नहीं है. उसकी आत्मा में अगर जरा सा भी जीवन शेष होगा वो काम करेगा.
सैंकड़ों वीडियो ऐसे मिल जाएंगे जिसमें पीएम मोदी खुद कहते हैं कि हाईस्कूल से ज्यादा पढ़ाई नहीं हो पाई लेकिन अमित शाह उनके सर्टिफिकेट पर पीसी करने जरूर आएंगे. विश्व स्वास्थ्य संगठन कह रहा कि किसी पारंपरिक दवा को वो सर्टिफाई नहीं करेगा. लेकिन कोरोनिल के प्रचार के लिए हमारे दो कैबिनेट मंत्री मुस्तैदी के साथ उसका विज्ञापन करेंगे.
नाली के गैस से चूल्हा जलाने वाले प्रधानमंत्री पर स्पूफ बने तो लोग आगबबूला क्यों होते हैं. वायुमंडल के गैस से पानी बनाने वाले पीएम पर विज्ञान युग उपहास क्यों नहीं कर सकता. बादल घिरने पर रडार काम नहीं करेंगे किसी भौतिकविद् से ये बात पच सकती है. बच्चों को परीक्षा पर टिप्स देनी है लेकिन खुद का जीके इतना कबाड़ बना दिए हैं उसपर कोई सवाल करे तो उसे देशविरोधी घोषित कर देंगे.
राष्ट्रवाद की अफीम का नशा होता ही ऐसा है कि सब कुछ लुटते हुए भी लोगों को हकीकत पर भरोसा नहीं होता. भारतीय अर्थव्यवस्था की जो वर्तमान स्थिति है; वो बेहद चिंताजनक है. बेरोजगारी की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ. वो दिन दूर नहीं जब भारत सरकार का रवैया ब्रिटिश हूकूमत की तरह ही दिखेगा. अखबार उठाकर पढ़िए, लगेगा रामराज्य आ ही गया है लेकिन जब आप उस व्यवस्था का जायजा खुद करने जाएंगे तो सब कुछ फरेब लगेगा. सभी दावे झूठे लगेंगे. सभी सरकारी नीतियों के विज्ञापन धोखेबाजी करते नज़र आएंगे.