महिला दिवस आने वाला है. कुछ महिला लेखिकाओं में अचानक नारीवाद उफान मारेगा. दुनियाभर की महिला लेखिकाएं भी हफ्ते भर से सक्रिय दिखाई दे रही हैं. काश! ये मुहिम दिन रात चलाई जाती और इसी ऊर्जा के साथ! तो शायद नारी अस्मिता का आकाश पूरी तरह से साफ दिखाई देता.
फेमिनिज़म में विश्वास रखने वाले लोग औरत और मर्द दोनों हो सकते हैं. इसी तरह महिलाओं के अधिकारों को छीनने वाले भी सिर्फ़ पुरूष ही नहीं होते, महिलाएं भी होती हैं. बलात्कार यानी रेप के वो मामले जो जबरन होते हैं, उनपर बात करना जरूरी है! लेकिन आपको ये सुनकर हैरानी होगी कि शादी के बाद दुनिया के 70 फीसदी मर्द अपनी पत्नी के ही साथ जबरन सेक्स करते हैं यानी रेप करते हैं.
अमेरिका और यूरोप में इन मसलों पर बात होती है. भारत सरीके देशों में भी इसपर बहस की जानी चाहिए. शादी, अगर रेप का सर्टिफिकेट बनकर रह गया है और शादी के बाद महिला को समाज के डर से बलात्कार जैसे वीभत्स अपराध को सहना पड़ रहा है. तो नारीवाद को मुखर होने की जरूरत है.
कार्यस्थल पर महिलाएं अपनी सहकर्मी महिलाओं को चुपचाप प्रताड़ित या शोषित होती देखती हैं. उनके लिए आवाज़ नहीं उठाती. कई मामले तो ऐसे भी हैं. जिनमें महिलाएं पुरुषों के साथ मिलकर अपनी जूनियर का शोषण करती हैं. ये शर्मनाक है.
तो ये ख़याल मन से निकाल देना होगा, कि सारे मर्द और महिलाएं एक जैसी होती हैं. ये बात भी अजीब है कि महिला विमर्श की बातें सिर्फ औरतें ही करेंगी. सबसे मूलभूत समस्या यही है. कुछ सांस, जिनके बेटे सिर्फ उनकी सुनते हैं वो खुद की बहू का शोषण कर रही है. अलबत्ता, वो पति! जो अपनी बीवी की ही सुन और कर रहा है अपनी बुजुर्ग मां को जीभर के प्रताड़ना दे रहा है.
हम भारतीयों का मनोविज्ञान यही है कि हम बिना केस स्टडी मसलों पर अवधारणा बना लेते हैं. जोकि पूरी तरह से अनुचित है. ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिसमें महिलाएं अपने विशेषाधिकारों का गलत इस्तेमाल करती पायी गई. किसी अच्छे भले इंसान को झूठे दहेज केस में फंसा दिया.
उन्हें ये बात पता है कि महिलाओं की खूब सुनी जाती है. ये अपवाद भी नारीवाद को लचर कर रहे हैं. महिलाओं को उनका हक बिना भेदभाव के चाहिए और यही एक आदर्श व्यवस्था के लिए जरूरी भी है. लेकिन महिलाओं को भी पुरुषों के अधिकारों को छीनने की कुत्सित चेष्टा को छोड़ना होगा.