पापा काॅलेज से आज जल्दी आ गये. जाने क्या जुनून था कि भरी बारिश में ही शहर निकल गये. हमारे यहां किसी के कहीं जाने पर टोकने को अशुभ करार कर दिया जाता है. फिर भी अगर आपके पिता बरसात रुकने तक का इंतज़ार नहीं कर रहे हैं, तो मन में स्वस्थ जिज्ञासा जाग ही उठती है. जाने से पहले मैंने पूछ ही दिया, कहाँ जा रहे हैं. बारिश में. दादी बिगड़ गई. कहने लगी कि फिर टोक दिये. पापा मुस्कराते हुए निकल गये. दादी से मैं इस विषय पर देर तक चर्चा करता रहा. मैंने उनसे पूछा कि बड़की माई क्या आपको पापा बताकर गये हैं कि कहाँ जा रहे. उनका भी जवाब नहीं मिला.
ब्यूटी दीदी आई, तो उन्होंने भी यही कहा कि बारिश रुकने पर नहीं जा सकते थे. कौन सा पहाड़ टूट गया कि थोड़ी देर रुक नहीं सकते थे. वग़ैरह… यही सब बातें हो रही थीं. थोड़ी देर बाद गोल्डेन भैया बारिश में ही धान के खेतों में पानी रुकने के लिए मेढ़ों को देखने के लिए निकल गये. बिचले बाबा भी जब शाम के समय बगीचे से लौटे तो हम लोगों से पूछने लगे कि ‘करे जनार्दन गाड़ी लेकर कहाँ निकलने हय बरिसिये में’. तनु दी ने जवाब दिया- ‘बाबा केहू के बता के ना गइने हय. बंटवारे के बाद बिचले बाबा भले रहते उन लोगों के साथ थें, लेकिन उन्हें हम सबकी परवाह रहती थी.
तभी पापा लौट आये. कपड़ा बदलने और पानी चाय करने के बाद पापा ने कहा- विश्वजीत को पैसे भेजने गया था. अगर आज नहीं जाता, तो लड़का परेशान होता. पापा हमें सामने से कभी प्यार नहीं जताते लेकिन हमारे लिए स्नेह की अनुपम और कच्ची डोरियों को हमेशा थामे रहते हैं.