प्रधानमंत्री मोदी! आपने नागरिकराज के लोकतांत्रिक अस्तित्व पर हमला किया है. गंगा के किनारे बसे वाराणसी को जीतने के लिए आपने कहा था- मुझे तो माँ गंगा ने बुलाया है. आज वही गंगा माँ अपने बेटों के शवों से पट गयी हैं. सनातन का पाखंड करने वाले आपके चापलूस सीएम योगी ने निर्ममता की सारी हदें पार कर दी हैं. जिन स्वाभिमानी हिंदुओं ने मध्यकाल में मुगलों की बर्बरता पर भी धर्म परिवर्तन नहीं किया; आज उन्हें मजबूर होकर लाशों को दफनाना पड़ रहा है. इस तरह आप धर्म की रक्षा करने में भी नाकाम हुए हैं.
समूचे भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं में भारी कमी से मास मर्डर का खुला खेल जारी है. कायदे से तो महामारी में चुनाव कराना ही गलत है, लेकिन आपकी भी संवेदना मर गयी और आप लाशों पर राजगद्दी की मनसा नहीं छोड़ पाए. पूरी दुनिया आज भारत पर थू थू कर रही है. क्या ये है आपका राष्ट्रवाद. इस देश में आखिर ऐसी स्थितियां क्यों बनाई गई. हालत ये है कि कोरोना की टेस्टिंग की सुविधाएं भी पूरे भारत में उपलब्ध नहीं हैं.
चीन अपने नागरिकों से ना तो टेस्टिंग का पैसा लेता है; और ना ही इलाज का. इससे पहले जब वहाँ सार्स महामारी आई थी तो उसने उसका भी डटकर सामना किया. सही समय पर अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करके उसने अपने लोगों की जानें बचाई. क्या भारत, चीन की तरह इस महामारी का सामना नहीं कर सकता था. इस महामारी में आपके सिस्टम ने लोगों को तबाह करके रख दिया है.
आपको शर्म आनी चाहिए कि आप उस धरती पर पैदा हुए हैं जहाँ एक पक्षी को मारने पर गौतम बुद्ध राजद्रोह पर उतर आये थे, वाल्मीकि ने क्रौंच के एक जोड़े को मारने के बाद निषाद को श्राप दे दिया था. एक गाय की जान बचाने के लिए राजा दिलीप ने सिंह के सामने खुद को पेश कर दिया. दरअसल, असलियत ये है कि आप सनातनी होने का सिर्फ ढोंग करते हैं. प्रधानमंत्री मोदी लोग कोरोना से नहीं, आपके नाकामी की वजह से मारे जा रहे हैं. चलिए, इतना बता दीजिये कि आपकी निष्ठुरता को देखने के बाद कितने लोगों ने आपसे मदद मांगी है. आप पर लोगों ने भरोसा करना छोड़ दिया है.
सोनू सूद आखिर कैसे सबको फ्री सुविधाएं देने में सक्षम हो गये और पूरा तंत्र होने के बाद आप लाशों को तमाशबीन होकर देखते रह गये. इस महामारी में स्वास्थ्य मंत्री इतने नाकारा साबित हुए हैं कि पूछिए मत! टेस्टिंग, ट्रीटमेंट और वैक्सीनेशन के लिए हर जगह लंबी कतारें हैं. भारत सरकार देश में दस हजार कोविड अस्पताल नहीं बनवा सकती. वो प्राइवेट अस्पतालों पर क्यों निर्भर होने को मजबूर है. जहाँ पर इलाज के नाम पर मनमानियाँ जगजाहिर है. लोग अपने प्रियजनों को खोने के बाद भी कर्जदार बन गये हैं.
आपदा में अवसर का तो खुला खेल ही चल रहा है. सभी अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं. लाशें ढोने के लिए लगे एंबुलेंसों की भारी कमी है. लोग एंबुलेंस के अभाव में खुद लाशें ढोने पर मजबूर हो रहे हैं और अगर एंबुलेंस मिल भी रही है तो लोगों को मुंहमांगी कीमत देने के बाद. अपनी लेटलतीफी से आप भारत का बेड़ा गर्क कर चुके हैं.