आप सभी के प्यार और लगातार मिल रही दुआओं से आज मैं कोरोना से लड़-भिड़ कर वापस आ गया. इस बीच जो अनुभव किया उस पर बस इतना कहूंगा कि हमेशा किसी भी बिषम परिस्थिति से लड़ने के लिए खुद को तैयार रखिए. जिंदगी में हार मान लेना अंतिम विकल्प नहीं है. बस पाॅजिटिव आने के बाद पाॅजिटिव रहने की कोशिश कीजिएगा.
लड़ाई महीने भर की थी. जिसमें थोड़ा-थोड़ा सभी लड़ रहे थें. मेरे कुछ अजीज दोस्त मयंक पटेल, रहस्य भोजक और सुमित कुमार. घर परिवार वाले. दफ्तर के लोग भी. हालांकि ये बात मैंने अम्मा पापा से साझा नहीं की. लेकिन अनुपमेय भैया, ब्यूटी दी, तनु दी, जूही दी, स्मृति दी और सुधांशु भैया-प्रीति भाभी सभी मेरे लिए फिक्रमंद रहे. कोई ऐसी सुबह शाम नहीं थी जब सुचिता बुआ का फोन ना आया हो. अरुणकांत चाचा को जब पता चला कि मैं संक्रमित हूँ; मैंने दूसरी बार पाया कि वो मेरे खातिर कितने परेशान हुए. पहली बार बचपन में मेरे पैर में एक रोज मॉर्टिन का स्टैंड चुभ गया था. बहुत खून बह गया था. चाचा आये और उन्होंने मुझे झटपट गोंद में उठाया और इलाज के लिए भागे.
इस बीच डाक्टर से ज्यादा एहतियात और उपाय तो सुधांशु भैया दे रहे थे. हर रोज देर तक बात करते. हंसाने की कोशिशें जुहाते. मुझे अगले जनम ऐसे ही भाई की दरकार रहेगी. जो संकट में भरपूर साथ दे. इस छोटे से पोस्ट में हर किसी का नाम ले पाना संभव नहीं है लेकिन आफिस से भी बाबुल सर, आशीष सिंह सर, विनोद सर, सीपी जी रोजाना हेल्थ अपडेट लेते रहते; और साहस बढ़ाते रहे. आप सभी को बहुत बहुत शुक्रिया और आभार. समय मुश्किल भरा जरूर रहा लेकिन आप सभी साथ रहे तो पता नहीं चला.